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UPPCS Prelims 1995 – bhaarat ke praacheen dharm | बौद्ध , जैन , वैष्णव ( भागवत ) , शैव - Solved Paper in Hindi

 

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग प्रारंभिक परीक्षा - 1995 – भारत के प्राचीन धर्म - Buddhist, Jain, Vaishnava (Bhagavata), Shaiva  व्याख्यात्मक हल प्रश्न पत्र )

 

प्रश्न - बुद्ध के निर्वाण के बाद हुई प्रथम संगीति के अध्यक्ष थे :

(a ) आनन्द

( b ) मोग्गलिपुत्त तिस्स

( c ) महाकस्सप

( d ) उपालि

 

उत्तर ( c ) महाकस्सप

 * बुद्ध के निर्वाण के तत्काल बाद अजातशत्रु के शासन काल में 483 ई ० पू ० में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन राजगृह की सप्तकर्णी गुफा में हुआ ।

* इस प्रथम बौद्ध संगीति की अध्यक्षता महाकस्सप ने की थी तथा इसमें बुद्ध के प्रथम शिष्य आनन्द और उपालि भी उपस्थित थे ।

* इसमें बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन हुआ तथा इन्हें सुत्त और विनय नाम के दो पिटकों में विभाजित किया गया | सुत्त पिटक में धर्म के सिद्धान्त तथा विनय में आचार के नियम थे ।

 

प्रश्न - निम्नलिखित में से किस जैन तीर्थंकर को कला में सर्पफण से युक्त प्रस्तुत किया जाता है :

( a ) आदिनाथ

( b ) नेमिनाथ

( c ) पार्श्वनाथ

( d ) महावीर

 

उत्तर ( c ) पार्श्वनाथ

 1. आदि नाथ- यह वृषभनाथ के नाम से भी प्रसिद्ध है । इनके खड़े होने के आसन पर साड़ का चिन्ह बना है ।

2. शान्ति नाथ - शान्ति नाथ के आसन पर मृग की आकृति बनी है |

3. पाश्र्व नाथ- इनके सिर के ऊपर सर्प का फन दिखाई पड़ता है |

4. महावीर इनकी मूर्ति के आसन पर सिंह अंकित हैं और सिर पर छत्र धारण किये रहते हैं ।

 

प्रश्न - जैन धर्म में संवर का अभिप्राय एक ऐसी अवस्था से है :

( a ) जब कर्म जीव की ओर प्रवाहित होने लगता है ।

( b ) जब कर्म जीव को बाँध लेता है ।

( c ) जब नए कर्म का प्रवाह रोक दिया जाता है ।

( d ) जब पहले से विद्यमान कर्म का क्षय कर दिया जाता है ।

 

उत्तर ( c ) जब नए कर्म का प्रवाह रोक दिया जाता है ।

* जैन धर्म में मोक्ष के लिये तीन साधन ( सम्यक् दर्शन , सम्यक् ज्ञान , सम्यक् चरित्र ) आवश्यक बताये गये हैं । इन तीनों को जैन धर्म में " त्रिरत्न " की संज्ञा दी जाती है ।

* त्रिरत्नों का अनुसरण करने से कर्मों की जीव की ओर बहाव रुक जाता है जिसे ' संवर ' कहते हैं ।

* इसके बाद पहले से जीव में व्याप्त कर्म समाप्त होने लगते हैं. इस अवस्था को " निर्जरा " कहा गया है ।

* जब जीव से कर्म का अवशेष बिल्कुल समाप्त हो जाता है तब मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है ।

 

प्रश्न - आजीवक सम्प्रदाय के व्याख्याता कौन थे :

( a ) अजित केसकम्बली

( b ) मक्खलि गोसाल

( c ) निगंठ नातपुत्त

( d ) पकुछ कच्चायन

 

उत्तर ( b ) मक्खलि गोसाल

* आजीवक सम्प्रदाय के व्याख्याता एवं प्रवर्तक मक्खक पुत्त गोसाल थे । युवावस्था में ये महावीर के सम्पर्क में आये और इन्होंने जैन धर्म स्वीकार कर लिया ।

* परन्तु कुछ काल पश्चात् मतभेद हो जाने के कारण इन्होंने महावीर से " सम्बन्ध विच्छेद कर लिया और आजीवक सम्प्रदाय की नींव डाली । मक्खलि पुत्त गोसाल की शिक्षा का आधार नियतिवाद था ।

 

प्रश्न - निम्नलिखित में शून्यवाद के व्याख्याकार कौन थे :

( a ) असंग

( b ) दिङ् नाग

( c ) नागार्जुन

( d ) वसुबन्धु

 

उत्तर ( c ) नागार्जुन

*  शून्यवाद ( माध्यमिक सम्प्रदाय ) के प्रवर्तक एवं व्याख्याकार नागार्जुन हैं ।

* नागार्जुन की प्रसिद्ध रचना माध्यमिक कारिका ' है । इसे सापेक्ष्यवाद भी कहा जाता है |

* नागार्जुन ने " प्रतीत्य समुत्पाद ' को ही है शून्यता कहा है ।

 

प्रश्न - विष्णु की प्राचीनतम प्रतिमा कहाँ से प्राप्त है :

( a ) मल्हार

( b ) मथुरा

( c ) नाणेघाट

( d ) विदिशा

उत्तर ( b ) मथुरा

 

प्रश्न - निम्नलिखित में से कौन एक स्त्री अलवार सन्त है :

( a ) आण्डाल

( b ) मधुर कवि

( c ) पेरुमाल

( d ) तिरुपान

 

उत्तर ( a ) आण्डाल

* दक्षिण भारत में वैष्णव धर्म का प्रचार प्रसार अलवार सन्तों द्वारा किया गया । आलवार शब्द का अर्थ ज्ञानी व्यक्ति होता है । अलवार सन्तों की संख्या 12 बताई गयी है|

* अलवारों में एक मात्र महिला साध्वी आण्डाल का नाम मिलता है ,जिसके भक्ति गीतों में कृष्ण कथाएँ अधिक मिलती हैं ।

 

प्रश्न - अपने वाहन वृषभ के साथ शिव का मूर्तरूप में अंकन सर्वप्रथम किसकें सिक्कों पर मिलता है :

(a ) वीम कडफिसस

(b ) हुविष्क

( c ) रुद्रदामन

( d ) शशांक

 

उत्तर ( a ) वीम कडफिसस

* कुषाण शासक विम कैडफिसेस ने सोने और ताँबे की मुद्राएं चलाई ।

* विम कैडफिसेस की ही मुद्राओं पर सर्वप्रथम वाहन वृषभ एवं त्रिशूल के साथ शिव का चित्र मिलता है । कुछ सिक्कों पर उसे महेश्वर भी कहा गया है ।

 

प्रश्न - निम्नलिखित में शैव सन्त कौन है :

( a ) भूतयोगी

( b ) महायोगी

( c ) परकाल

( d ) सुन्दरर

 

उत्तर ( d ) सुन्दरर

*  दक्षिण भारत में शैव धर्म का प्रचार - प्रसार नयनार सन्तों द्वारा किया गया । नयनार सन्तों की संख्या 63 बताई  गयी है ।

* शैव सन्तों में सर्वाधिक लोकप्रिय अप्पार , संबंदर,  मणिक्क वाचगर तथा सुन्दरर थे ।



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