मौर्य साम्राज्य - तथ्यों का संग्रह |
नमस्कार दोस्तों , प्रतियोगी
परीक्षा में प्राचीन भारतीय
इतिहास (History of Ancient India ) के Topic “ मौर्य साम्राज्य (mauryan empire) “ से आये हुए तथ्यों
का संग्रह प्रस्तुत किया गया है |
जो Students
Civil services, Railway, UPSC, SSC, Banking, State PSC, CDS, NDA, SSC CGL, SSC CHSL,
Patwari, Samvida, Police, SI, CTET, TET, Army, MAT, CLAT, NIFT, IBPS PO, IBPS
Clerk, CET, Vyapam , Lekhpal , VDO etc. तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी
कर रहे है उनके लिए “ maurya samrajya “ के History Notes in hindi रामबाण साबित होगे |
चन्द्रगुप्त मौर्य ( 323 ई.पू. से 298 ई.पू. )
* चंद्रगुप्त मौर्य ने नंदवंश के
अंतिम शासक धननंद ( धनानंद ) को हराकर मौर्य वंश की स्थापना 323 ई . पू . में की ।
* चंद्रगुप्त मौर्य भारत का पहला
महान ऐतिहासिक सम्राट कहलाता है ।
* चन्द्रगुप्त मौर्य एवं सेल्यूकस
के बीच युद्ध 305 ई.पू. में हुआ था । सेल्यूकस युद्ध में पराजित हुआ ।
फलस्वरूप चन्द्रगुप्त मौर्य तथा सेल्यूकस के बीच सन्धि हुई । सेल्यूकस ने अपनी
पुत्री हेलन का विवाह चन्द्रगुप्त के साथ कर दिया ।
* चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में
दिये थे ( प्लूटार्क के अनुसार ) |
* सेल्यूकस ने अपने राजदूत
मेगस्थनीज को चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा था ।
* मेगस्थनीज ने ' इंडिका ' की रचना की थी ।
* मेगस्थनीज के अनुसार भारत में
दास प्रथा नहीं था ।
* मेगस्थनीज भारतीय समाज को सात जातियों
में विभक्त किया । सात जातियां- दार्शनिक , किसान , अहीर , कारीगर या शिल्पी , सैनिक , निरीक्षक , सभासद तथा अन्य
शासक वर्ग ।
* मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र को
पालिब्रोथा नाम दिया था ।
* चन्द्रगुप्त का
साम्राज्य चार प्रान्तों में विभाजित था ।
* चन्द्रगुप्त मौर्य के दक्षिण
विजय की जानकारी तमिल ग्रंथ - अहनानूरू एवं पुरनानूरू से मिलती है ।
* चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना के
छः अंग थे अश्व सेना , हस्तिसेना , पैदल , नौसेना , रथ सेना और सैन्य
सहायता विभाग ।
* प्लूटार्क के
अनुसार चन्द्रगुप्त ने 6 लाख सेना लेकर समूचे भारत पर अधिपत्य स्थापित किया ।
* ब्राह्मण साहित्य
चंद्रगुप्त मौर्य को शूद्र कुल का और जैन एवं बौद्ध साहित्य उसे क्षत्रिय कुल का
मानते हैं ।
* चन्द्रगुप्त को यूनानियों ने
सैन्ड्रोकोटस कहा है ।
* विलियम जोन्स पहले विद्वान थे
जिन्होंने सैन्ड्रोकोट्टस की पहचान भारतीय ग्रंथों में चंद्रगुप्त से की है ।
* चन्द्रगुप्त मौर्य की प्राचीनतम
अभिलेखीय साक्ष्य रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से मिलता है । जूनागढ़ अभिलेख
ब्राह्मी लिपि में है ।
* अपने जीवन के अंतिम समय में
चन्द्रगुप्त ने जैन धर्म स्वीकार किया ।
* चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु
कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में स्थित चन्द्रागिरि पहाड़ी पर 298 ई.पू. में हुई थी ।
* चन्द्रगुप्त मौर्य ने सल्लेखना
विधि से ( भूखे - प्यासे रहकर ) शरीर का त्याग किया था ।
* तक्षशिला
धनुर्विद्या तथा वैधक की शिक्षा के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध था । चन्द्रगुप्त
मौर्य ने अपनी सैनिक शिक्षा यहीं पर ग्रहण किया था ।
कोशल के राजा प्रसेनजित , मगध का राजवैद्य जीवक , सुप्रसिद्ध
राजनीतिविद् चाणक्य , बौद्ध विद्वान वसुबन्धु आदि ने यहीं शिक्षा प्राप्त की थी ।
* चाणक्य ने अर्थशास्त्र ' नामक पुस्तक लिखी
जो मौर्य काल के इतिहास को जानने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है ।
* ' अर्थशास्त्र ' में मौर्य काल की
राजनैतिक स्थिति और राज प्रबन्ध के विषय में जानकारी मिलती है ।
* चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यपाल
पुष्यगुप्त वैश्य ने सुदर्शन नामक झील का निर्माण करवाया ।
* विभागों के अध्यक्ष को अमात्य
कहा जाता था ।
* चन्द्रगुप्त का जैन गुरु
भद्रबाहु था ।
* कौटिल्य ने राज्य
के सात अंग निर्दिष्ट किए हैं - राजा , अमात्य , जनपद , दुर्ग , कोष , सेना और मित्र ।
* चाणक्य के
अनुसार कानून के चार मुख्य अंग थे - धर्म , व्यवहार , चरित्र और शासन ।
मौर्य
काल में प्रयोग होने वाले प्रमुख शब्दावली
वार्ता
:
* राज्य की
अर्थव्यवस्था कृषि , पशुपालन और वाणिज्य पर आधारित थी , जिन्हें सम्मिलित
रूप से ' वार्ता ' कहा गया है ।
अदेवमातृक
:
* यह मुख्य कृषि
भूमि थी जिसमें बिना वर्षा के भी अच्छी खेती हो सके ।
उपधा
परीक्षण :
* राजा द्वारा मुख्यमंत्री एवं पुरोहित की नियुक्ति
उनके चरित्र की भली - भाँति जाँच के बाद की जाती थी , इस क्रिया को ' उपधा परीक्षण ' कहा जाता था ।
तीर्थ:
* अर्थशास्त्र में 18 विभागों का
उल्लेख है , जिसे ' तीर्थ ' का गया है ।
*तीथों के अध्यक्ष को महामात्र कहा गया है ।
समाहर्ता :
* समाहर्ता का कार्य राजस्व एकत्र करना , आय व्यय का
ब्यौरा रखना तथा वार्षिक बजट तैयार करना था ।
स्थानिक
:
* जिले का प्रशासनिक अधिकारी स्थानिक था जो
समाहर्त्ता के अधीन था ।
* विषय ( जिला ) विषयपति के अधीन होता था ।
प्रदेष्ट्रि :
* समाहर्त्ता के अधीन प्रदेष्ट्रि नामक अधिकारी
भी होता था , जो स्थानिक , गोप एवं ग्राम
अधिकारियों के कार्यों की जाँच करता था ।
सन्निधातृ :
* सन्निधातृ ( कोषाध्यक्ष ) का कार्य साम्राज्य
के विभिन्न भागों में कोषगृह और अन्नागार बनवाना था ।
कुमार :
* प्रांतों का शासन राजवंशीय ' कुमार ' या ' आर्यपुत्र ' नामक
पदाधिकारियों द्वारा होता था ।
गोप :
* प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ' गोप ' था , जो दस गाँवों का
शासन संभालता था ।
अंतपाल
:
* भारतीय सैनिक
प्रबंध की देख - रेख करने वाला तथा सीमांत क्षेत्रों का व्यवस्थापक अंतपाल होता था
।
सार्थवाह
:
* व्यापारियों के
श्रेणी के प्रधान को सार्थवाह कहा जाता था ।
मौर्यकाल
में दो प्रकार के न्यायालय थे :
( 1 ) कण्टकशोधन : यह फौजदारी न्यायालय था ।
( 2 ) धर्मस्थीय : यह दीवानी न्यायालय था ।
* नगर न्यायाधीश को व्यावहारिक महामात्र तथा जनपद
न्यायाधीश को ' राज्जुक ' कहते थे ।
मौर्यकाल
में दो प्रकार के गुप्तचर ( गूढ़ पुरुष ) थे -
( 1 ) संस्था- एक जगह स्थिर होकर गुप्तचरी करते थे
( 2 ) संचार - घूम - घूमकर
गुप्तचरी करते थे ।
* स्त्री गुप्तचर भी थी जिन्हें वृषली , भिक्षुकी तथा
परिव्राजक कहा जाता था ।
अन्य
जानकारी :
* मेगस्थनीज के
अनुसार नगर का प्रशासन 30 सदस्यों का एक
मंडल करता था , जो 6 समितियों में
विभक्त था । प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे ।
* ब्याज को रूपिका
एवं परीक्षण कहा जाता था ।
* दूरी मापने की
इकाई को स्टेडिया कहा जाता है ।
* भारत का व्यापार
रोम , फारस , सीरिया , मिस्र आदि देशों
से होता था ।
* पूर्वी तट पर
ताम्रलिप्ति तथा पश्चिमी तट पर सोपारा एवं भड़ौच ( भृगुकच्छ ) प्रमुख बन्दरगाह थे ।
* मौर्यकाल में
चाँदी की आहत मुद्रायें चलती थीं , जिन पर मयूर , पर्वत और अर्द्धचंद्र की मुहर अंकित होती थी ।
* निजी खेती करने
पर राजा को उपज का 1/6 भाग दिया जाता
था ।
* बलि एक प्रकार
का भू - राजस्व था ।
* हिरण्य कर अनाज
के रूप में न होकर नकद लिया जाता था
* राजकीय भूमि से
होने वाली आय को सीता कही जाती थी ।
* एग्रोनोमई मार्ग
निर्माण के विशेष अधिकारी कहा जाता था ।
* राज्य की
अर्थव्यवस्था कृषि , पशुपालन और
वाणिज्य पर आधारित थी , जिन्हें सम्मिलित
रूप से ' वार्ता ' कहा गया है ।
* अदेवमातृक (
मुख्य कृषि भूमि ) - ऐसी भूमि जिसमें बिना वर्षा के भी अच्छी खेती हो सके ।
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