नमस्कार दोस्तों , इस पोस्ट में UPSC (Prelims) IAS – 2008 – मौर्य
शासनकाल से आये हुए प्रश्नों को व्याख्या सहित हल किया गया है | प्रश्नों का व्याख्या मानक पुस्तकों से लिया गया
है |
छात्रों से अनुरोध है कि वो व्याख्या को भी पढ़ें
क्योंकि ये परीक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं |
जो Students Civil services, Railway, UPSC, SSC,
Banking, State PSC, CDS, NDA, SSC CGL, SSC CHSL, Patwari, Samvida, Police, SI,
CTET, TET, Army, MAT, CLAT, NIFT, IBPS PO, IBPS Clerk, CET, Vyapam , Lekhpal ,
VDO etc. तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है उनके लिए “ IAS Pre 2008 - मौर्य शासनकाल “ के History Quiz रामबाण साबित होगी |
Written by : Arvind Kushwaha
UPSC (Prelims) IAS – 2008 - Solved Questions With Explanations
मौर्य शासनकाल | Mauryan reign (
व्याख्यात्मक हल प्रश्न पत्र )
प्रश्न 1 - प्राचीन
भारत के सन्दर्भ में कार्यापण क्या हैं ?
( a ) ताम्रपत्र अभिलेख
( b ) साधारणतया
प्रचलित सिक्के
( c ) सेलखड़ी
मुद्राएँ ( Steatite
seals )
( d ) मन्दिरों की शिलाभित्तियों पर उत्कीर्ण अभिलेख
उत्तर- ( b ) साधारणतया प्रचलित सिक्के
व्याख्या-
* प्राचीन भारत के सन्दर्भ में कार्षापण
साधारणतया प्रचलित सिक्के हैं । कार्षापण तत्कालीन राजाओं द्वारा प्रचलित किए गए
स्वर्ण एवं चाँदी के सिक्के होते थे ।
स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास एवं संस्कृति
- के० सी० श्रीवास्तव
प्रश्न 2 - सम्राट
अशोक के सन्दर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. अशोक का पुराणों में अंकित पूरा नाम अशोकवर्द्धन है , परन्तु अपने अभिलेखों में उसने अपने
व्यक्तिगत नाम का कभी प्रयोग नहीं किया ।
2. भारत में उपलब्ध एकमात्र पुरालेखीय दस्तावेज जिसमें अशोक के नाम का
उल्लेख हुआ है , पश्चिमी क्षत्रप रुद्रद्रामन का अभिलेख
है ।
उपरोक्त कथनों में से कौन - सा / से
सही है / है ?
( a ) केवल 1
( b ) केवल 2
( c ) 1 और 2 दोनों
( d ) न
तो 1 और न ही 2
उत्तर – ( d ) न तो 1 और न ही 2
व्याख्या –
* अशोक का पुराणों में नाम अशोकवर्द्धन
मिलता है तथा मास्की , गुर्जरा , नेत्तुर तथा उडेगोलय के लेखों में अशोक
का व्यक्तिगत नाम भी मिलता है ।
* अभिलेखों में अशोक ईरानी शैली में ' देवानामप्रिय ' तथा देवानाम पियदस्सी उपाधियों से
विभूषित है ।
* राज्याभिषेक से सम्बन्धित मास्की के
लघु शिलालेख में अशोक ने स्वयं को बुद्ध शाक्य कहा है ।
स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास एवं संस्कृति
— के ० सी ० श्रीवास्तव
प्रश्न 3 - निम्नलिखित में से कौन - सा एक सम्राट अशोक के शासनकाल से सम्बन्धित प्रशासकीय अधिकारियों का , वरिष्ठ से आरम्भ कर कनिष्ठ स्तर तक , सही अनुक्रम है ?
( a ) राजुक - प्रादेशिक - महामात्र
( b ) महामात्र
– राजुक - प्रादेशिक
( c ) प्रादेशिक
– राजुक - महामात्र
( d ) महामात्र
— प्रादेशिक - राजुक
उत्तर- ( b ) महामात्र – राजुक - प्रादेशिक
व्याख्या-
* सम्राट अशोक के शासनकाल से सम्बन्धित प्रशासकीय अधिकारियों का कनिष्ठ से आरम्भ कर वरिष्ठ स्तर तक , सही अनुक्रम महामात्र- राजुक - प्रादेशिक है ।
* अर्थशास्त्र में सबसे ऊँचे स्तर के
कर्मचारियों को तीर्थ कहा गया है । तीर्थ शब्द एक - दो स्थानों पर प्रयुक्त हुआ है
। अधिकतर स्थलों पर इन्हें महामात्र की संज्ञा दी गई है । सबसे महत्त्वपूर्ण तीर्थ
या महामात्र मन्त्री और पुरोहित थे । राजा इन्हीं के परामर्श से अन्य मन्त्रियों
तथा अमात्यों की नियुक्ति करता था ।
* केन्द्रीय महामात्य ( महामात्र ) तथा
अध्यक्षों के अधीन अनेक निम्न स्तर के कर्मचारी होते थे , जिन्हें ' युक्त ' और ' उपयुक्त ' की संज्ञा दी गई है ।
* राजुक जनपद का प्रमुख अधिकारी था ।
जातक ग्रन्थों में इनका सम्बन्ध ' रज्जुगाहक
' ( रस्सी पकड़ने वाला ) से है । इस प्रकार
के अधिकारी भूमि की पैमाइश करने के लिए अपने पास रस्सी रखते थे । वे आजकल के
बन्दोबस्त अधिकारी की भाँति होते थे । राजुक का पद बड़ा महत्त्वपूर्ण होता था । राजुक
पहले केवल राजस्व विभाग का ही कार्य करते थे किन्तु अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 26 वें वर्ष इन्हें न्यायिक अधिकार भी
प्रदान कर दिए थे ।
* प्रादेशिक मण्डल का प्रधान अधिकारी
होता था । उसका कार्य आजकल के सम्भागीय आयुक्त ( Divisional Commissioner ) जैसा था । उसे न्याय का भी कार्य करना
पड़ता था ।
स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास - झा एवं
श्रीमाली
प्रश्न 4 - अर्थशास्त्र
में दिए गए वर्णन के अनुसार अन्तपाल नामक अधिकारी का क्या कर्त्तव्य था ?
( a ) ग्राम
अभिलेखों का अनुरक्षण
( b ) राजकीय
घुड़सालों ( Stables ) का नियन्त्रण
( c ) राजा
के अंगरक्षकों को वेतन का भुगतान
( d ) मार्गों
की सुरक्षा तथा उनका रख - रखाव
उत्तर - ( d ) मार्गों की सुरक्षा तथा उनका रख - रखाव
व्याख्या –
* अर्थशास्त्र में सबसे ऊँचे स्तर के
कर्मचारियों को ' तीर्थ ' कहा गया है । ऐसे अठारह तीर्थों का उल्लेख है जिनमें अन्तपाल भी
शामिल है । अन्तपाल का कार्य सीमावर्ती दुर्गों की रक्षा करना होता था ।
स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास - झा एवं
श्रीमाली
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