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What is colonialism : Indian modern history




उपनिवेशवाद क्या है ? 
उत्तर - उपनिवेशवाद ( Colonialism ) : कोई सतत् घटनाक्रम या संयुक्त संरचना नहीं है । यह विभिन्न स्तरों पर परिवर्तित होता रहता है । यद्यपि उपनिवेशवादी देश दासता व शोषण से पीड़ित रहते हैं , तब भी दासता व शोषण के रूप क्रमशः बदलते रहते हैं ।

प्रथम स्तर ( First Phase ) : उपनिवेशवाद के प्रथम चरण में व्यापारिक प्रक्रिया द्वारा साधनों ( Sources ) का शोषण होता है । इस चरण को व्यापार एकाधिकार या प्रत्यक्ष स्वायत्तता ( Monopoly and Direct Appropriation ) के नाम से भी जाना जाता है । ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत पर  विजय प्राप्त की थी । इस समय कम्पनी के दो आधारभूत उद्देश्य थे | कम्पनी का प्रथम उद्देश्य , भारत के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करना था । कम्पनी की नीति थी कि भारतीय उत्पादन के क्रय - विक्रय में यूरोपीय देश ईस्ट इण्डिया कम्पनी से स्पर्धा न करें , ताकि ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारतीय उत्पादन को यथासम्भव खरीदकर विश्व बाजार में यथासम्भव ऊँचे दामों पर बेच सके । इस प्रकार वे भारतीय आर्थिक बढ़ोत्तरी को व्यापारिक एकाधिकार द्वारा प्राप्त करना चाहते थे ।
रानी विक्टोरिया द्वारा जारी एक राजकीय आदेश जो ब्रिटिश सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया था , के द्वारा ईस्ट इण्डिया कम्पनी को भारत पर एकाधिकार प्राप्त हो गया । कम्पनी ने राजनीतिक प्रभुत्व बनाए रखने व देश के विभिन्न भागों पर नियन्त्रण करने के लिए । राजनीतिक विघटन का भी लाभ उठाया ।
उपनिवेशवाद का दूसरा मुख्य उद्देश्य था - सरकारी राजस्व ( Government Revenue ) को राजसत्ता पर नियन्त्रण करके सीधे रूप से हथिया लेना । कम्पनी को प्रतिद्वन्द्वी यूरोपीय देशों व भारतीय शासकों से युद्ध करने , नौसैनिक ठिकानों  के रख - रखाव व व्यापारिक चौकियों के चारों ओर सेना नियुक्त करने के लिए भारी आर्थिक साधनों की आवश्यकता थी । व्यापारिक एकाधिकार एवं सरकारी राजस्व से कम्पनी का लाभ बढ़ गया । अब ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारतीय व्यापारियों एवं हस्तकला उत्पाद पर एकाधिकारात्मक नियंत्रण ( Monopolistic Control ) करने के लिए अपनी राजनीतिक शक्ति का प्रयोग किया । धीरे - धीरे भारतीय व्यापारी तबाह हो गए । बुनकर एवं कारीगर अपन माल को कम दामों पर बेचने के लिए विवश हो गए । फिर भी ब्रिटिश निर्माताओं के माल का भारत में आयात ऊँचे स्तर पर नहीं हुआ , अपितु इसके विपरीत भारतीय वस्त्रों के निर्यात में वृद्धि हुई ।
राजनीतिक विजय के बाद भारतीय राज्यों के राजस्व पर दोहरी नीति की मदद से प्रत्यक्ष नियन्त्रण ( Direct Control ) हो गया । कम्पनी व उसके कर्मचारियों ने अनैतिक रूप से भारत से खूब धन ऐंठा ।
इस  अवधि में उपनिवेशवाद की विशेषता यह थी कि उपनिवेशवाद  के अंतर्गत प्रशासन , न्यायिक व्यवस्था , पासपोर्ट , संचार , कृषि , उद्योग , संस्कृति , समाज और शिक्षा के क्षेत्र में कोई आधारभूत परिवर्तन नहीं आया । यहाँ तक कि धर्म प्रचारक ( Missionaries ) को भी इसका प्रचार करने से रोक दिया गया । इस समय तक ब्रिटिश शासन आधुनिक व विकसित व्यवस्था के रूप में नहीं था ।