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Administrations change after 1858 : Modern history




प्रश्न 6 . 1858 के बाद प्रशासनों में कौन - कौन से  परिवर्तन हुए ?

उत्तर –
1 ) महारानी विक्टोरिया की घोषणा और ईस्ट इंडिया कंपनी की समाप्ति :

महारानी विक्टोरिया ने नवम्बर 1857 का शाही घोषणा की तथा ईस्ट इंडिया कंपनी की समाप्ति हो गई । महारानी विक्टोरिया की इस घोषणा . के . पीछे मुख्यतःचार उददेश्य थे । प्रथम भारतीय जनता को यह बताना कि अब ईस्ट इंडिया कपनी का शासन समाप्त हो गया है और इंग्लैंड का सीधा शासन प्रारम्भ हो गया है । इस घोषणा के माध्यम से इंग्लैंड की सरकार अपने शासन के सिद्धांतों का स्पष्टीकरण करना चाहती थी । इसके द्वारा भारतीय जनता को कुछ आश्वासन दिए गए , जिनका उद्देश्य भारतीय जनता के प्रति सद्भावना , सहिष्णुता और समानता के भाव प्रकट करना था ।
2 ) सेना का पुनर्गठन :
1857 के विद्रोह के दमन के साथ ही ब्रिटिश शासन को जिसकी सर्वाधिक आवश्यकता महसूस हुई वह थी सेना का पूनर्गठन । लॉर्ड कैनिंग ने सेना का पुनर्गठन किया । सेना में भारतीयों के मुकाबले यूरोपीयों का भाग बढ़ा दिया गया । भारत में ब्रिटिश सेना की संख्या 65 , 000 और भारतीय सैनिकों की संख्या 1 , 40 , 000 कर दी गई । दूसरे , तोपखाने पर पूर्णतः यूरोपीय सैनिकों का नियंत्रण कर दिया गया । तीसरे , 1857 से पूर्व स्थानीय उद्देश्य की पूर्ति के लिए यूरोपीय सैनिकों की नियुक्ति की जाती थी । यह एक विवादास्पद विषय था । 1860 में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने एक कानून द्वारा यह तय किया कि भविष्य में स्थानीय यूरोपीय सैनिकों को भर्ती नहीं किया जाएगा । इस समय तक जो भी ऐसे सैनिक थे , उन्हें शेष सेना के साथ मिला दिया गया । चौथे , कुछ राजभक्त रेजीमेटो को छोड़कर बंगाल सेना को समाप्त कर दिया गया । पाँचवें सैनिक पुलिस समाप्त कर दी गई ।
इस प्रकार से लॉर्ड कैनिंग ने सैनिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए ।

3 ) भारतीय विधान परिषद् अधिनियम ( 1861 ) :
1858 के पश्चात का एक महत्त्वपूर्ण संवैधानिक अधिनियम था । वास्तव में इसे आधुनिक काल में भारतीय इतिहास में प्रतिनिधित्व प्रणाली का प्रारंभ कहा जा सकता है । इसके दूरगामी परिणाम हुए । इससे देश में लोगों को विधि निर्माण में स्थान दिया जाने लगा । इसने बंबई और मद्रास की सरकारों को कानून बनाने के संबंध में अधिकार प्रदान किए । इसने विधान परिषद के क्षेत्र में विकेंद्रीयकरण की नीति की आधारशिला रखी , जिसके परिणामस्वरूप 1937 में प्रांतों में आंतरिक स्वायत्तता प्राप्त हो सकी ।
4 ) पुरस्कार और दंड की नीति :
1857 के संघर्ष में अनेक भारतीय रियासतों ने अंग्रेज़ों का साथ दिया था । लॉर्ड कैनिंग ने इन रियासतों के प्रति कृतज्ञता  प्रकट की थी । उसने कहा था - ' इन्होंने तूफान के आगे बांध की तरह काम किया । वरना यह तूफान एक ही लहर में हमें  बहा ले जाता । यह सर्वविदित है कि ग्वालियर , हैदराबाद , नाभा और जींद के शासकों ने पूरी तरह से अंग्रेज़ों की मदद की थी । ब्रिटिश सरकार इस अवस्था को कायम रखना चाहती थी अतः उन्होंने राज्य हड़पने की पूर्व नीति में परिवर्तन किया । ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अपने एक हितैषी के रूप में खड़ा किया ।
1876 में ब्रिटिश संसद ने एक महत्त्वपूर्ण अधिनियम ' रायल टाइटल्स ' पास किया । इससे महारानी विक्टोरिया को भारत में समस्त ब्रिटिश प्रदेश और भारतीय रियासतों सहित भारत की ' सम्राज्ञी ' की उपाधि से विभूषित किया गया । अंग्रेज़ी साम्राज्य की शक्ति का प्रदर्शन करने और भारतीय राजाओं में राजभक्त बढ़ाने के लिए भारत में शानदार शाही दरबार लगाने की प्रथा भी शुरू की गई ।
5 ) बांटो और राज करो ' की नीति :
प्रारंभ में मुसलमानों के प्रति अंग्रेज़ों का व्यवहार संदेह और दमन का रहा । ' बांटो और राज करो ' की साम्राज्यवादी नीति भारत में अंग्रेज़ों की राजनीति का आधार बन गई थी । अत : अंग्रेजों ने इन दोनों प्रमुख समुदायों को बांटे रखने को अपना आधार बनाया । वस्तुतः ' बाटो और राज करो ' की नीति लंदन के इंडिया आफिस से लेकर कलकत्ता और दिल्ली के वायसराय भवनों तक और नीचे भारत के प्रत्येक जिले में जिलाधिकारियों की नीति बन गई थी ।
6 ) वर्नाकुलर प्रेस का दमन :
इस अधिनियम के दवारा स्थानीय सरकारों की आज्ञा से मजिस्ट्रेटों को यह अधिकार दिए गए कि वे किसी भी प्रकार की कटुता या सरकार के प्रति घृणा की भावना पैदा करने वाले प्रकाशक या छापने वाले से सुरक्षा धनराशि या एक शर्तनामा भरने को कहे । दूसरे , यदि कोई देशी समाचार - पत्र इस अधिनियम की कार्यवाही से बचना चाहे तो उसे अपने पत्र की  प्रति सरकारी सेंसर को पहले से देनी होगी । तीसरे , मजिस्ट्रेट के निर्णय के विरुद्ध कोई अपील भी नहीं की जा सकती थी । चौथे , स्थानीय सरकारें किसी भी वर्नाकुलर समाचार - पत्र को चेतावनी दे सकती थीं और उन पर नियंत्रण रखकर उनकी सुरक्षा धनराशि हड़प सकती थीं । पांचवें , यह अधिनियम केवल वर्नाकुलर पत्रों पर ही लागू होना था , अंग्रेज़ी समाचार - पत्रों को इसकी परिधि से मुक्त रखा गया ।
7 ) अंग्रेजों की नस्लीय भेदभाव की नीति :
समय - समय पर भारतीयों को इस अपमानजनक  स्थिति का मुकाबला करना पड़ता था । शासक और शासित के संबंधों में भारी दरार पैदा हो गई थी । अंग्रेज़ों ने भारतीयो से सामाजिक दृष्टि से मिलना - जुलना बहुत कम कर दिया और उससे पारस्परिक द्वेष और घृणा बढ़ी । भारतीय भी अंग्रेज़ों की क्रूर करतूतों , अत्याचारों और निर्मम हत्याओं को नहीं भूले । रसेल ने , जो उस समय लंदन टाइम्स ' के पत्रकार के रूप में 1858 - 59 तक भारत यात्रा पर था . अपनी डायरी में लिखा ' विद्रोह से दो जातियों के बीच घृणा और दुर्भावना पैदा हुई । पत्र में एक कार्टून में भारतीयों को एक अर्धपशु के रूप में चित्रित किया गया , जिसमें वह आधा गोरिल्ला और आधा नीग्रो दिखाया गया है और लिखा है कि इसे बल - प्रयोग के द्वारा ही नियंत्रित रखा जा सकता है ।
8 ) प्रतियोगी परीक्षाएं :
1857 के पश्चात ब्रिटिश नागरिक सेवाओं को भारतीयों के लिए और अधिक कठोर बनाया गया । यद्यपि 1853 से ही नागरिक सेवाओं में भर्ती होने के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं आरंभ हो गई थी परंतु 1857 तक किसी भी भारतीय की ऊंचे पद पर नियुक्ति न हुई थी । 1858 के नियम में पुनः प्रतियोगिता का समर्थन किया गया , परंतु 1860 के नियम में खुली प्रतियोगिता की आयु घटाकर 23 वर्ष के स्थान पर 22 वर्ष कर दी गई थी और चुने हुए छात्रों के एक वर्ष इंग्लैंड में प्रोबेशन पर रहने की बात कही गई थी । 1866 में यह आयु पुनः घटाकर 21 वर्ष कर दी गई और इंग्लैंड में प्रोबेशन दो वर्ष का कर दिया गया । सरकारी नौकरी के क्षेत्र में इस भेदभाव की नीति का यह परिणाम हआ कि भारतीयों के उच्च सेवा के लिए अवसर कम ही रहे । निम्न पदों में भारतीयों के प्रति भेदभाव की नीति चलती रही । आगे भी अंग्रेज़ों की यह नीति चलती रही । परंतु इसका एक लाभ अवश्य हुआ । इसने भारतीयों में जागृति पैदा की और इसी के लिए श्री सुरेंद्रनाथ बैनर्जी के नेतृत्व में  एक देशव्यापी आंदोलन हुआ ।
9 ) यूरोपीय संवैधानिक तरीकों का प्रवेश :
1757 से 1857 तक भारत में ईस्ट इंडिया कपनी का शासन था , परंतु 1857 के विद्रोह के पश्चात सीधे ब्रिटिश सरकार का भारत में  शासन स्थापित हो गया । अब कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स का स्थान भारत कौंसिल के 15 सदस्यों ने ले लिया । अतः शासन का केंद्र सीधे ब्रिटिश पार्लियामेंट , भारत मंत्री और उसकी कौंसिल के हाथों में आ गया । साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिला । ब्रिटिश सरकार ने भारतीय रीति - रिवाजों , विविधताओं , प्रवृत्तियों , आकांक्षाओं , प्रकृति , स्थानीय समस्याओं को उपेक्षित कर ब्रिटिश ढंग की पद्धतियों को मनमाने ढंग से लागू किया । बांटो और राज करो ' , जातीय भेदभाव , कठोर और पक्षपातपूर्ण कानून प्रणाली , अलगाव और टकराव की नीति , आर्थिक विषमताओं , सामाजिक उपेक्षाओं और कटुताओं पर बल दिया । अब हिंदू और मुसलमानों में परस्पर कटुता बढ़ाना , सेना और उच्च सेवाओं में भेदभाव स्थापित करना उनकी नीति का आधार बन गए ।