उत्तर - 19वीं शताब्दी में
देश के कई भागों अनेक सामाजिक - धार्मिक आन्दोलन हुए । वे आन्दोलन समाज में
व्याप्त बुराई , असामाजिक क्रूरता
, अमानवीयता , रिवाजों , समाज में व्याप्त
परम्पराओं जैसे सती - प्रथा , बाल - विवाह , बहु - विवाह , बालिका शिशु - हत्या , जाति आदि के
विरोध में थे । इन आन्दोलनों ने भारतीय लोगों में जागृति पैदा की । ये सामाजिक
संगठन तथा समाज - सुधारक निम्नलिखित थे |
ब्रह्म
समाज :
राजा राममोहन राय भारत के सर्वप्रथम समाज - सुधारक थे वे
लोगों के असीम स्नेह के कारण द्रवित हुए तथा उन्होंने अपने पूरे जीवन - काल में लोगों
के सामाजिक , धार्मिक , बौद्धिक तथा
राजनैतिक उत्थान के लिए अथक परिश्रम किया । उन्होंने सन 1814 में आत्मीय सभा प्रारम्भ
की तथा बंगाल में रहने वाले हिन्दुओं में व्याप्त धार्मिक तथा
सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध संघर्ष किया ।
उनके द्वारा स्थापित ब्रह्म सभा का
नाम बाद में ब्रह्म समाज हो गया , जिसका मुख्य उद्देश्य एक देवता की पूजा का उपदेश था । राजा
राममोहन राय पश्चिमी शिक्षा प्रणाली के कट्टर समर्थक थे । उनका कहना था कि आधुनिक
शिक्षा के माध्यम से भारत का सुधार हो सकता था । आधुनिक शिक्षा के प्रचार के लिए
उन्होंने कलकत्ता में वेदान्त कॉलिज की स्थापना की ।
तरुण
बंगाल आन्दोलन :
सन 1820 तथा 1830 के वर्षों में बंगाली बुद्धिजीवियों में एक नई आधारभूत प्रवृत्ति उत्पन्न हुई । यह
प्रवृत्ति राजा राममोहन राय के विचारों से भी आधुनिक थी तथा इसे तरुण बंगाल आन्दोलन के नाम से
जाना गया ।
इसके प्रेरक एंग्लो
- इण्डियन हैनरी विवियन डेरोजियो थे । वे उज्ज्वल प्रतिभाशाली तथा महान फ्रेंच
आन्दोलन से प्रेरित थे । वे बहुत अच्छे शिक्षक थे तथा उन्होंने स्वतन्त्रता से
प्रेम करने , समानता , स्वतंत्रता तथा
सत्य की पूजा के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित किया । उन्होंने कुरीतियों तथा
एरम्पराओं का खण्डन किया । वे महिला अधिकार के पक्षधर थे तथा उन्होंने महिलाओं के
लिए शिक्षा की मांग की ।
विधवा
- विवाह
पंडित
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर एक महान विद्वान एवं समाज - सुधारक थे । यद्यपि वे सस्कृत
के विद्वान थे , तो भी पश्चिमी
विचारधारा के लिए उनका मस्तिष्क खुला हुआ था । वे भारतीय तथा पश्चिमी संस्कृति के
मिश्रण का प्रतिनिधित्व करना चाहते थे । विद्यासागर को पीड़ित भारतीय महिलाओं के
उत्थान के लिए उनके योगदान को याद किया जाता है । विधवा - विवाह के पक्ष में
उन्होंने एक लम्बा संघर्ष किया ।
रामकृष्ण
परमहंस मिशन :
रामकृष्ण परमहंस एक संत थे तथा वे दक्षिणश्वर के नाम से
जाने जाते थे । वे माता काली के उपासक थे तथा सभी धर्मो का सम्मान करते थे ।
वे इस बात पर बल देते थे कि ईश्वर तथा मोक्ष प्राप्त करने के लिए अनेक रास्ते है
तथा मानव सेवा ईश्वर - सेवा के समान है , क्योंकि मनुष्य ईश्वर का ही प्रतिरूप है ।
स्वामी
विवेकानन्द रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे । उन्होंने अंधविश्वास , अस्पृश्यता , जातिवाद आदि के
विरुद्ध आन्दोलन का नेतृत्व किया । मानव - हित या सामाजिक कार्य के लिए विवेकानन्द
ने सन् 1896 में रामकृष्ण
मिशन स्थापित किया ।
आर्य
समाज :
दयानन्द सरस्वती ने उत्तर भारत में धर्म में सुधार लाने का
कार्यभार सम्भाला तथा सन 1875 में आर्य समाज की स्थापना की । महिलाओं की
दशा सुधारने के आर्य समाजी कट्टर पक्षधर थे
तथा वे उनमें शिक्षा का प्रसार करना चाहते थे । बाह्मणों द्वारा प्रचारित
हिन्दुत्व में जातिवाद को रोकना चाहते थे । वे अस्पृश्यता , कट्टरवाद तथा
वंशगत जाति के विरुद्ध लड़े । उन्होंने लोगों में आत्म - सम्मान तथा आत्म -
विश्वास की भावना की शिक्षा का प्रचार किया ।
सैय्यद
अहमद खाँ व अलीगढ़ स्कूल :
मुसलमानों के
धार्मिक व सामाजिक सुधार के लिए आन्दोलन विलम्ब से प्रारम्भ हुआ । मुसलमान
सुधारकों में सैय्यद अहमद खाँ का नाम उल्लेखनीय है । उन्होंने धार्मिक , सामाजिक तथा
राजनीतिक प्रश्नों पर विचार - विमर्श करने के लिए सन 1863 ई . में कलकत्ता
में मोहम्मद लिटरेसी सोसाइटी की स्थापना की ।
परमहंस मण्डली
द्वारा धार्मिक सुधार का कार्य सन् 1840 में आरम्भ किया गया , जिसका उद्देश्य
मूर्ति - पूजा तथा जाति - व्यवस्था के विरुद्ध लड़ना था । सन् 1848 में अनेक शिक्षित
युवकों ने विद्यार्थी साहित्य एवं वैज्ञानिक सोसायटी बनाई तथा विज्ञान व सामाजिक
प्रश्नों पर व्याख्यानों का आयोजन किया । विधवा - पुनर्विवाह था नारी - मुक्ति के
जोतिबा फुले , पंडित विष्णु
शास्त्री , दादा भाई नौराजी , सभी महाराष्ट्र
के पक्षधर थे । समाज - सुधारकों की सहायता से सती प्रथा , बालिका - शिशु
हत्या को कानूनी तौर पर निषिद्ध कर दिया गया तथा विधवा - विवाह के लिए एक्ट पास
किया गया ।