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Swadeshi and boycott movement : modern history




प्रश्न  . स्वदेशी व बहिष्कार आन्दोलन के विषय में आप क्या जानते हैं ? इसकी मुख्य उपलब्धियों को बताइए ।

उत्तर - स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन बंगाल विभाजन से जुड़े थे । बंगाल - विभाजन ( कर्जन नीति ) ने आन्दोलन को एक नया मोड़ दे दिया । उग्रराष्ट्रवादी नेता ( Militants ) महसूस करते थे कि सार्वजनिक सभाओं ( Public Meetings ) व केवल प्रस्तावों से शासकों  पर कुछ विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा । इसका समाधान  था - स्वदेशी व बहिष्कार ।


बहिष्कार का अर्थ विदेशी वस्तुओं को प्रयोग न करना था | ब्रिटिश साम्राज्य की वस्तुओं के बहिष्कार का सुझाव सर्वप्रथम कृष्णकुमार मित्रा की साप्ताहिक पत्रिका संजीवनी में दिया गया था . जिसे 7 अगस्त  1905 को टाउन हाल की मीटिंग में स्वीकार कर लिया गया ।

लोगों को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए कहीं गया । सम्पूर्ण बंगाल में स्वदेशी को प्रयोग करने व विदेशी  वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए बड़ी - बड़ी सभाएं की गई । विदेशी वस्त्रों की सार्वजनिक स्थानों पर होली जलाने के कार्यक्रम आयोजित किए गए तथा विदेशी वस्त्र बेचने वाली दुकानों पर धरने दिए गए ।



उपलब्धियाँ : 
स्वदेशी आन्दोलन ने भारतीय अर्थव्यवस्था , संस्कृति , समाज व संगठन को बहुत प्रोत्साहन दिया । कपड़े की कई मिलें , साबुन तथा माचिस की फैक्ट्रियाँ , बुनाई तथा हथकरघा कारखाने , राष्ट्रीय बैंक , बीमा कम्पनियाँ आदि खोली गई ।
बंग लक्ष्मी कॉटन मिल्स , मोहिनी मिल्स तथा नेशनल टैनरी ( चमड़ा उद्योग ) खुले । आचार्य पी . सी . राय ने केमिकल फैक्ट्री तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर ने स्वदेशी स्टोर्स खोले ।

स्वदेशी आन्दोलन में राष्ट्रीय काव्य , गद्य व पत्रकारिता भी काफी फले - फूले । रवीन्द्रनाथ टैगोर , रजनीकांत सैन तथा मुकुन्द दास आदि कवियों के द्वारा रचित बंगाली कविताएँ आज भी गाई जाती है । बंगाल नेशनल कॉलिज तथा प्राथमिक विद्यालय से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक के विद्यालय खोले गए ।

प्रभाव : 
इस आन्दोलन का मुख्य कार्यक्रम स्वदेशी स्तुओं का प्रचार करना था । इससे लोगों में स्वदेशी वस्तुओं को प्रयोग करने की भावना उत्पन्न हुई तथा देश में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन मिला । विद्यार्थियों व महिलाओं द्वारा इसमें भाग लेना इस आन्दोलन की एक बड़ी विशेषता थी ।
कई प्रमुख मुसलमानों ने इस आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान किया , जिनमें लियाकत अली खों तथा गजनी के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । इस आन्दोलन ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया ।

ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया :

इन घटनाओं को देखकर ब्रिटिश सरकार मूकदृष्टा बनकर नहीं रहे । बंगाल में दमन के लिए  शासन को खुली छूट दे दी गई । विरोध - सभाओं  को तोड़ दिया गया तथा बिना अभियोग चलाए राजनैतिक नेताओं को बंद कर दिया गया । विद्यार्थियों को परीक्षाओं व सरकारी नौकरियों के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया । बन्दे मातरम् ' गीत पर रोक लगा दी गई । मुसलमानों को हिन्दुओं का विरोध करने के लिए प्रोत्साहित किया गया । धरना देने वालों पर लाठी चार्ज किया गया तथा इस आन्दोलन से सहानुभूति रखने वालों को तरह - तरह की यातनाएँ दी गई |

तथापि सन् 1907 तक इस आन्दोलन में कोई कमी नहीं आई । 20वीं शताब्दी के प्रथम दशक में इस आन्दोलन का अन्त हो गया तथा सन् 1911 से पूर्व विभाजन को रद्द नहीं कराया जा सका ।