उग्र राष्ट्रवाद की उत्पत्ति के कारण क्या थे ।
उत्तर –
( 1 ) ब्रिटिश शासन की सही पहचान तथ नरम दल की असफलता :
1892 से 1905 ई . तक ब्रिटेन
से आने वाले लैंस डाउन , एल्गिन तथा कर्जन जैसे गवर्नर
जनरल प्रबल साम्राज्यवादी थे । उन्होंने भारत के उदारवादियों की मांगों को ठुकरा
दिया । इतना ही नहीं उन्होंने राष्ट्रीयता
के भावों को कुचलने का भी प्रयास किया । इससे भारत के युवकों को ब्रिटिश शासन के
सच्चे स्वरूप को समझने में देर न लगी ।
दूसरी ओर इसी काल
खण्ड में कांग्रेस का नेतृत्व सुधारवादी
मनोवृत्ति के लोगों के हाथ में था । अब तक कांग्रेस द्वारा पारित प्रस्तावों का
उद्देश्य था धारा सभाओं का विस्तार , न्यायपालिका के कार्यों को अलग करना , ऊची नौकरियों में
भारतीयों की भर्ती , प्रशासन तथा सेना
पर होने वाले व्यय में कमी करना , गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद तथा इण्डिया कौंसिल में
भारतीयों का प्रवेश आदि था ।
सरकार इन प्रस्तावों
की बिल्कुल चिन्ता नहीं करती थी और उन्हें रद्दी की टोकरी में फेंक देती थी । इतना
ही नहीं इंग्लैण्ड की आर्थिक स्थिति मजबूत
करने तथा भारत में अपना शासन स्थायी बनाने
के प्रयास तीव्र गति से किए जा रहे थे और
गरम विचार वाले कांग्रेस के नेता इसे रोक नहीं पा रहे थें |
भारत का युवक
कांग्रेस की नरम नीति को अधिक सहन न कर सका और प्रस्ताव पारित करने को भीख मांगना
बतलाकर उसने उसे ठुकरा देना चाहा ।
( 2 )
अकाल तथा प्लेग :
उन्नीसवीं
शताब्दी के अन्तिम वर्षों में भारत में भयंकर अकाल पड़ा जिसका प्रभाव लगभग दो
करोड़ लोगों पर पड़ा | सरकार का कार्य अपर्याप्त तथा अव्यवस्थित था | गिलटियों
वाला प्लेग भी इसी समय फैला । बम्बई प्रेजीडेंसी के पश्चिमी भाग में तो तहलका - सा
मच गया । बम्बई सरकार ने इसकी रोकथाम के लिए जिन उपायों को अपनाया उनसे जनता में असन्तोष
उत्पन्न हुआ क्योंकि विदेशी लगन तथा उत्साह से कार्य नहीं करते थे ।
( 3 )
कमिश्नर रैण्ड की भूमिका :
पूना के कमिश्नर , प्लेग कमिश्नर
रैण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुए | उनके कार्यो की कटु आलोचना लोकमान्य तिलक के केसरी
पत्र ने की । श्री रैण्ड के प्रति भारतीयों में असन्तोष बढ़ता गया और एक युवक ने कमिश्नर रैण्ड
तथा लैटिनेन्ट एमहर्स्ट की हत्या कर दी ।
परिणामस्वरूप महाराष्ट्र में सरकार का दमन कार्य प्रारम्भ हुआ |
सरकार ने हत्या
के उकसाने के अपराध में लोकमान्य तिलक को बन्दी बना कर मुकदमा चलाया और अठारह
महीने की सजा दी । इस सजा के विरुद्ध उन्हें प्रिवी कौंसिल में अपील करने की
अनुमति भी नहीं दी गई । देश के युवक वर्ग में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई ।
( 4 )
लार्ड कर्जन का शासन :
लार्ड कर्जन
साम्राज्यवादी आदर्श लेकर भारत आया था । उसके शासन ने जले पर नमक छिड़कने के समान
काम किया । भयंकर अकाल पड़ने के तुरन्त
बाद शाही दरबार के आयोजन ने अशान्ति
उत्पन्न कर दी । इतना ही नहीं लार्ड कर्जन ने 1904 में घोषणा की कि ' उच्च शासकीय पदों
पर केवल अंग्रेजों की ही नियुक्ति होनी चाहिए । इस प्रकार उसने भारतीय युवकों को
सरकारी पदों के अयोग्य ठहराया । 1905 ई . में बंगाल का विभाजन करके उसने भारत में
आग लगा दी । इस प्रकार उसका शासन काल ' मिशन ओमिशन तथा
कमीशन ' से भरा हुआ था ।
( 5 )
बंगाल का विभाजन :
लार्ड कर्जन के
शासन काल का भारत में रोष उत्पन्न कर देने वाला कार्य 1905 ई में बंगाल का विभाजन था । फूट डालो और शासन
करो ' की नीति पर आधारित इस योजना के अनुसार बंगाल को मुस्लिम तथा हिन्दू बहुमत क्षेत्र में विभाजन
करना था । इस कार्य की सिद्धि के लिए कर्जन ने बंगाल का दौरा किया और मुसलमानों को
इसके लाभ से परिचित कराया ।
केवल बंगाल में
ही नहीं , सम्पूर्ण भारत में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई और सर्वत्र
विरोध सभाएं आयोजित की गई । भारत मन्त्री को प्रार्थना - पत्र भी भेजा गया किन्तु
कुछ लाभ न हुआ । बंगाल - विभाजन की योजना ने गरम दल को शक्ति प्रदान की और देश में
विदेशी माल का बहिष्कार तथा स्वदेशी माल का प्रचलन प्रारम्भ हुआ ।
( 6 )
विश्व की घटनाओं का प्रभाव :
गरम दल को शक्तिशाली
बनाने मे विश्व में घटित कुछ घटनाओं ने
बहुत सहयोग दिया । अंग्रेजों का दक्षिणी अफ्रीका के भारतीयों पर किया गया अत्याचार
भारत के युवकों को स्वीकार नहीं था । इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई । दूसरे , एबिसीनियन फौजों
के द्वारा इटली को हराना तथा मिस्त्र व
फारस के राष्ट्रीय आन्दोलनों ने भारतीय युवकों के मनोबल को बढ़ाया ।
1904 ई में जापान
जैसे छोटे देश द्वारा रूस को पराजित करना एक ऐसी घटना थी जिसके उग्रवादी राष्ट्रवादियों
को प्रोत्साहित किया ।
( 7 )
प्रखर राष्ट्रवादी नेताओं का नेतृत्व :
ब्रिटिश शासन की
चाटुकारिता करने वाली कांग्रेस को अंग्रेजो से संघर्ष करने वाली तथा देश के युवकों
में बलिदान करने की भावना जगाने वाली कांग्रेस में परिवर्तित करने का कार्य उस काल
के तीन प्रखर राष्ट्रवादी नेताओं ने किया जो लाल , बाल , पाल - के नाम से
प्रसिद्ध हुए । इनमें से लाला लाजपत राय पंजाब से , बाल गगाधर तिलक महाराष्ट्र से तथा विपिनचन्द्र पाल बंगाल से
सम्बन्धित थे । इस प्रकार इन नेताओं ने सम्पूर्ण देश में प्रखर राष्ट्रवाद
का शंख फूका ।
इन नेताओं ने देश
के कोने - कोने में अपने ओजस्वी उत्साहपूर्ण वातावरण का निर्माण हुआ । इन्होंने
उदारवादी नेताओं की कड़े शब्दों में निन्दा की और उनकी भिक्षावृत्ति की नीति को
देश के लिए अपमान बतलाया । बाल गंगाधर तिलक ने घोषणा की कि ' स्वतन्त्रता मेरा
जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूंगा ।
लाला लाजपतराय
ने देश की जनता से आग्रह किया कि ' भिखारी घृणा का
पात्र होता है और हमारा कर्तव्य है कि हम यह सिद्ध कर दें कि हम भिखारी नहीं हैं ।
राष्ट्रवादी नेताओं के नेतृत्व के कारण कांग्रेस भारतीय जनमानस की संस्था बन गई और अंग्रेजों से संघर्ष करने को तैयार हो गई ।
देश के युवकों ने कांग्रेस में सम्मिलित होकर अंग्रेजों पर दबाव डालने वाले
कार्यक्रम हाथ में लिए इस प्रकार कांग्रेस में उग्रवाद का विकास हुआ ।
उग्रवादियों
के कार्यक्रम व नीतियाँ :
उग्रवादी
कांग्रेस की नरम व उदार नीति के विरोध थे । उनका कहना था कि स्वतन्त्रता भीख
मांगने से प्राप्त नहीं होती , उसके लिए बलिदान देने होते है साम्राज्यवादी शक्ति कभी भी
अपने साम्राज्य को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होगी जब तक कि शक्ति के द्वारा उसे
देश छोड़ने को मजबूर नहीं किया जाता ।
(ii) ये ऐसे उग्रवादी
थे , जो देश के लिए
पूर्ण स्वराज्य चाहते थे ,
किन्तु उसके लिए
हिंसक क्रान्ति को उचित नहीं मानते थे प्रथम , वे अहिंसक किन्तु कठोर उपायों का उपयोग करके विदेशियों को
कठिनाइयों में डालने के पक्षपाती थे ।
(ii) वे देश के प्राचीन गौरव से उत्साह लेते थे और
देश में गौरव को जगाकर राष्ट्रीयता की
भावना को जगाना चाहते थे |शिवाजी , राणा प्रताप , गुरु गोविन्द सिंह आदि में उनके आदर्श थे ।
(iii) इन लोगों ने जनता की धार्मिक भावनाओं को भी
जागृत किया , जिससे सामान्य
लोगों में देश के प्रति कर्त्तव्य भावना को जगाना सम्भव हो सका ।
(iv) उग्रवादियों का
कार्यक्षेत्र देश का सर्वसाधारण व्यक्ति था जो प्राचीन गौरव से ओत - प्रोत था ।
नवयुवकों ने उनके विचारों को अधिक स्वीकार किया ।
उग्रवादियों
के संघर्ष की विधि - कार्यक्रम :
उग्रवादियों ने
जिस कार्यक्रम को अपनाया उसमें मुख्यत : ऐसे कार्यक्रम थे जिनमें सर्वसाधारण
व्यक्ति भाग ले सके | इस कार्यक्रम की रचना इस प्रकार की गई थी कि एक ओर यह
राष्ट्रीयता की भावना साधारण व्यक्ति में भी जागृत कर सकें तथा साम्राज्यवादी
शक्ति में भय उत्पन्न हो ।
इस
कार्यक्रम के मुख्य अंग निम्नलिखित थे :
(
1 ) राष्ट्रीय शिक्षा का प्रचार :
इन उग्रवादियों
का विचार था कि विदेशी शिक्षा के माध्यम से राष्ट्रीय विचारों की शिक्षा नहीं दी
जा सकती और देश भक्ति की भावना का विकास नहीं किया जा सकता । उनका कहना था कि
पाश्चात्य शिक्षा से परोक्ष रूप में कुछ लाभ भले ही प्राप्त हो किन्तु प्रत्यक्षतः
यह भारतीयता के गौरव को नष्ट करने वाली है । अतः उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा पर बल
दिया जो भारत की प्राचीन संस्कृति व सभ्यता के प्रति गौरव उत्पन्न करे और व्यक्ति
का चतुर्मुखी विकास करे । ये लोग आधुनिक ज्ञान व विज्ञान की शिक्षा दिए जाने के भी
पक्षपाती थे ।
(2) विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार :
राष्ट्रीय
आन्दोलन को देश के सर्वसाधारण तक पहुंचाने के लिए तथा उसको स्वतन्त्रता के प्रयास
में अपना कर्तव्य निभाने का अवसर देने के विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार का सर्वाधिक
सफल कार्यक्रम अपनाया । इससे विदेशीपन के प्रति घृणा उत्पन्न हुई । इसके साथ ही
उन्होंने जनता से अनुरोध किया कि वह जीवन के हर क्षेत्र में भारतीयता को अपनाए
विशेषतः स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करे । लोकमान्य तिलक की दृष्टि में इस कार्यक्रम
से लोगों में स्वाभिमान य त्याग की भावना उदय होगी । इस आन्दोलन का एक परिणाम यह
भी होना था कि इससे भारतीय उद्योग धंधों को प्रोत्साहन मिलेगा और विदेशी माल का भारत
में आयात कम होगा ।
(3 ) प्रतिरोध तथा असहयोग:
उग्रवादियों ने
केवल विदेशी माल के बहिष्कार तक ही अपने कार्यक्रम को सीमित नहीं रखा बल्कि
प्रतिरोध व असहयोग ' की नीति अपनाई । एक ओर सरकार के जनहित विरोधी
कार्यक्रमों का प्रतिरोध किया । यद्यपि उन्होंने इसके सशस्त्र संघर्ष को स्वीकार
नहीं किया , किन्तु विभिन्न उपायों से इस प्रकार संघर्ष किया कि सरकार
का चल पाना कठिन हो गया । सरकारी अदालतों का बहिष्कार किया गया , सरकारी शिक्षणालय
का बहिष्कार किया गया , तथा सरकार की
योजनाओं के प्रति असहयोग करके उस असफल बनाने का प्रयास किया ।
वास्तव में
उग्रवादी एक और राष्ट्रीयता के विचारों पर प्रसार करके अधिकाधिक लोगों को राष्ट्रीय
आन्दोलन में सम्मिलित करना चाहते थे और दूसरी ओर सरकार पर दबाव डालकर उसे कठिनाई
में डालना चाहते थे जिससे उनकी मांगों को मानने के लिए सरकार मजबूर हो जाए ।
(4 ) ' होम रूल आन्दोलन ' में सक्रिय :
1916 ई . में
श्रीमती एनीबेसेन्ट ने मद्रास में होम रूल लीग की स्थापना करके घोषित किया कि
भारतवासियों को भी होम रूल अर्थात् स्वशासन प्राप्त होना चाहिए । उन्होंने इसके
लिए ब्रिटिश शासन से आग्रह पूर्वक निवेदन
भी किया । उग्रवादियों के कार्यक्रम से मेल खाने के कारण उन्होंने ' होम रूल ' आन्दोलन को अपना
लिया ।
लोकमान्य तिलक ने
महाराष्ट्र में होम रूल लीग ' की स्थापना की । धीरे - धीरे यह आन्दोलन
देशव्यापी बन गया । सारे देश में स्वशासन ' प्राप्त करने की
मांग उठ खड़ी हुई । आन्दोलन की तेजी देखकर सरकार घबरा उठी और उसने आतंक का सहारा
लिया । नेताओं को जेल में बन्द कर दिया गया किन्तु आन्दोलन शान्त न हुआ ।
1917 ई . में
आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया । भारत मन्त्री की इस घोषणा के याद कि ब्रिटिश
सरकार धीरे - धीरे भारत में उत्तरदायी शासन स्थापित करना चाहती है , यह आन्दोलन शिथिल
पड़ गया ।
माण्टेग्यु
चेम्सफोर्ड सुधार इसी घोषणा के परिणाम थे जो 1919 ई . के भारत सरकार अधिनियम के
रूप में सामने आए ।