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Difference between extremist and peace-loving nationalists :modern history





प्रश्न . उग्रवादी व शान्तिप्रिय राष्ट्रवादियों में क्या अन्तर था तथा अपने राजनीतिक उद्देश्यों को उपलब्ध करने में वे किस सीमा तक सफल रहे ?

 उत्तर - 
1885 में  इण्डियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना हुई । सन् 1905 तक कांग्रेस के अधिकतर लोग शान्तिप्रिय थे तथा संगठन में इनका तथा इनके समर्थकों का काफी प्रभाव था । इस समय तक उग्रराष्ट्रवादियों का प्रभाव कांग्रेस में बहुत कम था । परन्तु सन् 1905 में आन्दोलन में उग्रराष्ट्रवादियों का प्रभाव बहुत तेजी से बढ़ गया । 
बाल गंगाधर तिलक , विपिन चन्द्र पाल तथा लाला लाजपत राय उग्रराष्ट्रवादियों के मुख्य नेता थे । इन्हें बाल , पाल व लाल के नाम से जाना जाता था । शान्तिप्रिय गुट के नेता सुरेन्द्र नाथ , गोपालकृष्ण गोखले , फिरोज शाह मेहता आदि थे । इन दोनों गुटों में कई भिन्नताएँ थीं । इनका वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है |

उग्रवादी व शान्तिप्रिय राष्ट्रवादियों में अन्तर

(1) शान्तिप्रिय गुट के सदस्य ब्रिटिश के इरादों में विश्वास रखते थे तथा ब्रिटिश द्वारा भारत के आधुनिकीकरण से प्रभावित थे व उनके प्रति पूर्णरूप से वफादार थे | वे ब्रिटेन व भारत के सम्बन्धों को तोड़ना नहीं चाहते थे । जबकि तिलक ब्रिटिश शासन को अभिशाप मानते थे । उनका यह कहना था कि सर्वश्रेष्ठ विदेशी शासन से स्वराज अच्छा है । 
(2) दूसरी भिन्नता यह थी कि शान्तिप्रिय गुट मेल - मिलाप व समझौते की नीति में विश्वास रखता था  । कहीं पर थोड़ा - सा प्रतिनिधित्व व कहीं पर थोड़ी - सी नौकरी मिल जाने पर ही वे सन्तुष्ट हो जाते थे । उग्रराष्ट्रवादी गुट छोटी - मोटी रियायतों की परवाह नहीं करते थे । उनका विचार था कि यह केवल कष्ट को कम करने का एक पहल था , न कि रोग - निवारण का साधन । उग्रराष्ट्रवादियों के अनुसार केवल स्वराज ही सही उपाय था । 
(3) एक अन्य भिन्नता दोनों गुट  की  कार्यविधि की थी । शान्तिप्रिय लोगों की दृष्टि में काँग्रेस आन्दोलन जन - आन्दोलन नहीं था । वास्तव में शान्तिप्रिय गुट अंग्रेजों की शुभ - कामनाओं व सहानुभूति पर निर्भर था । उनका अनुमान था कि यदि अपनी परेशानियों को अंग्रेजों के सम्मुख रखा जाए , तो वे उन्हें कम  देंगे  । उग्रराष्ट्रवादी इस नीति से इन्कार करते थे । उनका विश्वास था कि भारत के भाग्य के स्वामी स्वयं भारतीय है न कि कोई विदेशी शक्ति । 
(4) शान्तिप्रिय गुट का विश्वास था कि जो कुछ वे माँगेंगे . वह उन्हें बिना परेशानी के मिल जाएगा । उग्रराष्ट्रवादियों का कहना था कि भीख मांगने के कटोरे में स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती । उग्रराष्ट्रवादियों ने असहयोग व बहिष्कार ( Non - cooperation and Boycott ) का रास्ता  अपनाया । उन्होंने लोगों से देश के औद्योगिक शोषण , शिक्षा , न्यायिक प्रशासन आदि सब क्षेत्र में बिटिश सरकार से असहयोग करने का आह्वान किया । 

परिणाम :
परन्तु  उग्रराष्ट्रवादी लोगों को सकारात्मक नेतृत्व देने में असफल रहे । वे वास्तविक जन - समूह तथा देश के किसानों तक पहुँचने में भी असफल रहे । उनका आन्दोलन केवल शहरी निम्न व मध्यम श्रेणी के लोगों तक ही सीमित रहा । वे कोई प्रभावशाली पार्टी भी संगठित नहीं कर सके । परिणामस्वरूप उनका दमन करने में काफी हद तक सरकार सफल रही ।