हड़प्पा
की सभ्यता की खोज तथा विकास:
पाकिस्तान
के पंजाब प्रांत में स्थित ‘
माण्टगोमरी
जिले में रावी नदी के बाएँ तट पर स्थित यह एक पुरास्थल है । हड़प्पा में
ध्वंशावशेषों के विषय में सबसे पहले जानकारी 1826 ई .
में ' चार्ल्स मैन्सर्न ' ने दी । 1856 ई .
में ' ब्रण्टन बंधुओं ने हड़प्पा
के पुरातात्विक महत्त्व को स्पष्ट किया ।
1872 में प्रसिद्ध
पुरातत्त्ववेत्ता सर अलक्जेंडर कनिंघम इस स्थान पर आया एवं उसने भी इस स्थान का
अध्ययन किया । ' जॉन मार्शल ' के निर्देशन में 1921 ई . में ' दयाराम
साहनी ' ने इस स्थल का उत्खनन कार्य
प्रारंभ करवाया एवं 1924 में उन्होंने हड़प्पा के
विषय में रिपोर्ट दी ।
हड़प्पा
की सभ्यता का युग -
चार्ल्स
मोसन के अनुसार यह सभ्यता सिकंदर महान के समय की है । कनिघम के अनुसार यह सभ्यता
एक हजार वर्ष पुरानी है । मार्शल के अनुसार इस सभ्यता का काल पाँच हजार वर्ष
पुराना है । मार्शल ने यह पता लगाया कि हड़प्पा से प्राप्त साक्ष्य मुहरें , ठप्पे आदि उनसे बिल्कुल भिन्न थे , जिनसे विद्वान परिचित थे तथा जो बहुत बाद के
समय की थीं । इसी प्रकार मोहनजोदड़ो में प्राचीन बस्तियाँ बौद्ध विहार के नीचे दबी
हुई मिली । मोहनजोदड़ो सभ्यता के निवासी मकान के नष्ट हो जाने पर उसके ऊपर मकान
बना लेते थे । इस कारण पुरातत्वविदों को उत्खनन से पता चलता है कि नीचे का मकान
ऊपर के मकान से पुराना है ।
मार्शल
को इस बात का प्रमाण मिल गया था कि इन बस्तियों के लोगों को लोहे की जानकारी नहीं
थी । लोहे का प्रयोग लगभग 2000 ई . पू . में शुरू हुआ ।
मार्शल द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी से पता चला कि हड़प्पा से मिलती - जुलती
वस्तुएँ मेसोपोटामिया में भी प्राप्त हुई हैं । यह भी पता चला कि हड़प्पा और
मेसोपोटामिया के निवासी समकालीन थे । मार्शल के निष्कर्ष का समर्थन करते हुए , विद्वानों ने हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पा की
संस्कृतियों के लिए निम्नलिखित कालक्रम माना है
5500 ई . पू . से 3500 ई . पू . तक -
इस
काल को नवपाषाण युग कहा जाता है । इस काल में मेहरगढ़ और फीली गुलमुहम्मद जैसी
बस्तियों का उदय हुआ , जो कि बलूचिस्तान और सिंधु
के मैदानी भागों में स्थित थीं । यहाँ लोग पशु चराने के साथ कुछ खेती का काम भी
करते थे । इस युग के लोग गेहूँ ,
जौ , खजूर तथा कपास की खेती की जानकारी रखते थे और
भेड़ - बकरियों और मवेशियों को पालते थे । प्रमाण के रूप में मिट्टी के मकान , मिट्टी के बर्तन और दस्तकारी की वस्तुएँ मिली हैं
।
3500 ई . पू . से 2600 ई . पू . तक –
यह
आरंभिक हड़प्पा काल था । इस काल में पहाड़ों और मैदानों में बहुत - सी बस्तियाँ
स्थापित हुई । ताँबा , चाक और हल का प्रयोग कर कई
प्रकार के मिट्टी के अद्भुत बर्तन बनाए जाते थे । इस काल में अन्न भंडार , ऊँची - नीची दीवारों और सुदूर व्यापार के
प्रमाण मिले हैं । इसके साथ - साथ पीपल , कुबड़े
बैलों , शेषनागों , सींगदार देवता आदि के रूपांकनों । के प्रयोग के
साक्ष्य भी मिले हैं ।
2600 ई . पू . से 1800 ई . पू . तक –
यह
काल पूर्ण विकसित हड़प्पा युग था । इस काल में मध्य नगरों का उदय हुआ था । नगर भी
सुनियोजित तरीके से बनने लगे थे । प्रमाण के रूप में समान आकार की ईंटें , मिट्टी के बर्तन , सुदूर व्यापार , तौलने
के बाँट , मुहरें , नियोजित ढंग से बसे हुए शहर और अच्छी एवं समकोण
पर काटती सड़कें आदि इस नगरीकरण के विशिष्ट लक्षण थे ।
1800 ई . पू . से आगे –
यह
काल उत्तर हड़प्पा युग कहलाता है । हड़प्पा की सभ्यता के बहुत से शहर खाली हो गए , अंतर - क्षेत्रीय विनिमय में ह्रास हुआ , लेखन कार्य और शहरी जीवन का त्याग कर दिया गया
। हड़प्पा की सभ्यता के शिल्प और मिट्टी के बर्तनों की परंपरा जारी रही । पंजाब
सतलुज यमुना की ग्रामीण संस्कृतियों का विभाजन और गुजरात में हड़प्पा की शिल्प और
मिट्टी के बर्तनों की परंपराओं को अपनाया जाने लगा ।