मौर्य वंश : प्रश्नावली
मौर्य वंश : प्रश्नावली
- प्रश्न : मगध की मौगोलिक स्थिति का वर्णन कीजिए ।
- उत्तर - मगध प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था । बौद्ध काल तथा परवर्ती काल में यह उत्तरी भारत का सबसे अधिक शक्तिशाली जनपद था । इसकी स्थिति स्थूल रूप से दक्षिण बिहार के प्रदेश में थी । मगध की सीमा उत्तर में गंगा से लेकर दक्षिण में विन्ध्य पर्वत तक , पूर्व में चम्पा से लेकर पश्चिम में सोन नदी तक विस्तृत थी ।
- मगध के सर्वप्रथम उल्लेख से सूचित होता है कि विश्वस्फटिक नामक राजा ने मगध में प्रथम बार वर्णों की परंपरा प्रचलित करके आर्य सभ्यता का प्रचार किया था । वाजसेनीय संहिता में मागधों या मगध के चारणों का उल्लेख है ।
- मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह थी । यह पाँच पहाड़ियों से घिरा नगर था । कालातर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित हुई ।
- मगध राज्य ने तत्कालीन शक्तिशाली राज्यों कौशल , वत्स व अवन्ति को अपने जनपद में मिला लिया । मगध राज्य का विस्तार उत्तर में गंगा , पश्चिम में सोन तथा दक्षिण में जंगलाच्छादित पठारी प्रदेश तक था । पटना और गया जिले का क्षेत्र प्राचीन काल में मगध के नाम से जाना जाता था ।
- मगध प्राचीन काल से ही राजनीतिक उत्थान , पतन एवं सामाजिक - धार्मिक जागृति का केंद्र बिंदु रहा है । मगध बुद्ध के समकालीन एक शक्तिशाली व संगठित राजतंत्र था । गौतम बुद्ध के समय में मगध में बिम्बिसार और तत्पश्चात् उसके पुत्र अजातशत्रु का राज था ।
- इस समय मगध की कोसल जनपद से बड़ी अनबन थी यद्यपि कोसल नरेश प्रसेनजित की कन्या का विवाह बिम्बिसार से हुआ था । इस विवाह के फलस्वरूप काशी का जनपद मगध राज को दहेज के रूप में मिला था । यह मगध के उत्कर्ष का समय था और इस जनपद की शक्ति बराबर बढ़ती रही ।
- प्रश्न: मौर्यकालीन इतिहास को प्रस्तुत करने वाले स्रोतों पर प्रकाश डालिए ।
- उत्तर - भारतीय इतिहास में मौर्य वंश प्रथम प्रसिद्ध ऐतिहासिक वंश है जिसके विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए पर्याप्त ऐतिहासिक सोत उपलब्ध हैं । मौर्यकालीन इतिहास के सोतों में साहित्यिक साक्ष्य , पुरातात्विक साक्ष्य एवं विदेशी यात्रियों के वृत्तात महत्त्वपूर्ण हैं ।
- साहित्यिक सोतो को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है - ( i ) धार्मिक साहित्य , एवं ( ii ) धर्मेत्तर साहित्य ।
- ब्राह्मण साहित्य में विभिन्न पुराणों एवं उनकी टीकाओं का उल्लेख किया जा सकता है । इनसे मौर्य शासकों के नाम उनके शासन काल की अवधि तत्कालीन सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति एवं मौर्य वंश की जाति पर प्रकाश पड़ता है ।
- जैन साहित्य भी मौर्यकालीन इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है । जैन अनुश्रुति अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने बाद के जीवन में जैन धर्म को अपना लिया था । इस कारण जैन साहित्य ने मौर्यकालीन इतिहास पर आरंभ से ही प्रकाश डाला है जबकि बौद्ध साहित्य अशोक के समय से अपने विवरणों को आधार बनाया ।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र की खोज 1905 ई . में हुई । यह मौर्य काल से संबंधित महत्त्वपूर्ण स्रोत माना जाता है । लेकिन अर्थशास्त्र के कुछ अध्यायों का लेखन काल ईसा बाद की प्रथम दो शताब्दियों में हुआ होगा । इसके बावजूद कई अन्य विद्वान इस ग्रंथ के अधिकांश हिस्से को मौर्य काल का लेखन मानते हैं । उनकी मान्यता है कि मूल ग्रंथ चंद्रगुप्त के मंत्री , कौटिल्य द्वारा लिखा गया था । बाद के वर्षों में अन्य विद्वानों द्वारा इसकी टिप्पणी लिखी गई और इसका . संपादन किया गया ।
- पुरातात्विक साक्ष्य - पुरातात्विक साक्ष्यों में अभिलेखों का महत्त्वपूर्ण स्थान है । अशोक के अभिलेख भारत के प्राचीन सर्वाधिक सुरक्षित एवं तिथियुक्त आलेख हैं । ये लेख शिलाओं , स्तंभों , गुफाओं में उत्कीर्ण करवाए गए । इन लेखों को उसने अपने शासन काल के विभिन्न वर्षों में उत्कीर्ण करवाया । इन अभिलेखों की भाषा प्राकृत ( पाली ) तथा बहुसंख्यक लेखों की लिपि ब्राह्मी है जो बायीं ओर से दायीं ओर लिखी जाती थी ।
- शहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा ( पश्चिमोत्तर प्रदेश ) से प्राप्त अभिलेख खरोष्ठी लिपि में हैं जो दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती थी ।
- तक्षशिला एवं लमगान ( अफगानिस्तान ) से प्राप्त अभिलेख अरेमाइक लिपियों में हैं ।
- शार - ए - कुना ( कंधार - अफगानिस्तान ) द्विभाषी अभिलेख है जिसमें अरेमाइक एवं यूनानी लिपियों का प्रयोग है ।
- अशोक के अभिलेखों को पढ़ने का श्रेय बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी के लोकसेवा अधिकारी जेम्स प्रिंसेप को दिया जाता है जिन्होंने 1837 में दिल्ली के टोपरा स्तंभ लेख के संपूर्ण भाग को पढ़ा ।
- गुजर्रा ( दतिया - मध्य प्रदेश ) , मास्की ( रायचूर - आंध्र प्रदेश ) , नित्तूर एवं उदेगोलिम ( दोनों ही बेल्लारी - कर्नाटक ) के लघुशिलालेख ऐसे लेख हैं जिनमें अशोक के नाम का उल्लेख है । उसके अन्य लेखों में उसे ' देवाना प्रिय प्रियदर्शी राजा ' कहा गया है ।
- सिक्के - मौर्य साम्राज्य के इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्को का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है । मौर्य काल में आहत सिक्कों ( पंच मार्क्स ) का प्रचलन था । इन सिक्कों पर किसी शासक का नाम या तिथि अंकित नहीं है अपितु चिह्न उत्कीर्ण है । जिन सिक्कों पर मयूर चिह्न उत्कीर्ण है , उन्हें मौर्यों द्वारा प्रचलित माना जाता है | कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी मुद्राओं का उल्लेख प्राप्त होता है ।
- विदेशी यात्रियों के वृत्तांत - विदेशी यात्रियों के वृत्तांतों से भी मौर्यकालीन इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । इनमें सिकन्दर के समकालीन लेखकों में निआर्कस , अरिस्टोबुलस एवं आनेसिक्रिटस का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।
- इनके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में नियुक्त यूनानी राजदूत मेगस्थनीज का महत्त्वपूर्ण स्थान है जिसने इण्डिका की रचना की । दुर्भाग्यवश इण्डिका मूल रूप में उपलब्ध नहीं है । इण्डिका से चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था , सैन्य संचालन , नगर व्यवस्था तथा राज्य की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति पर अच्छा प्रकाश पड़ता है ।
- इन यात्रियों के अतिरिक्त परवर्ती यूनानी - रोमन लेखकों में डियोडोरस स्ट्रेबो , प्लिनी , प्लूटार्क , एरियन एवं जस्टिन आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है जिन्होंने अपने पूर्व के लेखकों की रचनाओं को उद्धृत किया है ।
- इन लेखकों के विवरणों से मौर्यकालीन इतिहास पर भी आशिक रूप से प्रकाश पड़ता है । उपर्युक्त यूनानी एवं रोमन लेखकों के अतिरिक्त चीनी एवं तिब्बती लेखकों एवं यात्रियों की कृतियों से भी मौर्यकालीन इतिहास पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है ।
- फा - युएन - चू - लिन ग्रंथ में अशोक संबंधी अनेक सूचनाएँ उपलब्ध हैं ।