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भारत का राष्ट्रीय आंदोलन PART1

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भारत का राष्ट्रीय आंदोलन -PART-1



भारत का राष्ट्रीय आंदोलन
भारत का राष्ट्रीय आंदोलन और भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रथम  चरण (1885-1905 ई.)
  •   भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रारंभ 1885   ई. से माना जाता है, तब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थापना हुई भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रथम चरण की मुख्य घटना 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना थी

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना:


  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पिता ए.ओ. हयूम को कहा जाता है।  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक ए.ओ. ह्यूम स्कॉटलैण्ड के निवासी थे। एलन ऑक्टेवियन ह्यूम एक प्रशासनिक अधिकारी, राजनैतिक सुधारक और ब्रिटिश भारत में शौकिया पक्षी विज्ञानी थे । हालांकि वह कांग्रेस के जन्मदाता थे  परंतु उसने कभी भी इसकी अध्यक्षता नहीं किया

  • ए.ओ. हयूम कांग्रेस के महामंत्री पद पर 1885 से 1907 ई. तक बने रहे
  • इसका प्रथम अधिवेशन, 28 दिसम्बर, 1885 ई. को बम्बई स्थित गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में हुआ था |
  • इस अधिवेशन के अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी थे।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाले प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष (1887 ई.) बरुद्दीन तैय्यबजी थे |
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अंग्रेज अध्यक्ष (1888 ई.) जॉर्ज यूल थे।


भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का द्वितीय चरण (1905-1919 ई.)

  • राष्ट्रीय आंदोलन के इस चरण को नव राष्ट्रवाद अथवा उग्रवाद के उदय का काल माना जाता है। उसी समय स्वदेशी आन्दोलन तथा क्रांतिकारी आतंकवाद का सूत्रपात हुआ था। कांग्रेस के उग्रवादी नेताओं में प्रमुख थे-बाल गंगाधर तिलक, अरविन्द घोष, विपिनचन्द्र पाल, लाला लाजपत राय आदि।

  • भारत में उग्रवाद के उदय का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है। ।
  • तिलक़ ने 1884 ई. में गणपति महोत्सव, 1886 ई. में शिवाजी महोत्सव प्रारम्भ किए थे। स्वराज, स्वदेशी, बहिष्कार का नारा सर्वप्रथम तिलक ने ही दिया था।
  • राष्ट्रीय आंदोलन के द्वितीय चरण में क्रांतिकारी आतंकवाद के प्रमुख केन्द्र बंगाल, पंजाब एवं महाराष्ट्र थे। इस चरण में क्रांतिकारियों ने तिलक द्वारा दिए गए नारे 'अनुनय विनय नहीं अपितु युयुत्सा' को अपना आदर्श  घोषित किया।

बंगाल विभाजन


  • बंगाल में राष्ट्रीय चेतना को नष्ट करने के  उद्देश्य से लॉर्ड कर्जन द्वारा 20 जुलाई , 1905 ई को बंगाल विभाजन के निर्णय को घोषणा की थी|
  • बंगाल विभाजन के विरोध में कांग्रेस द्वारा 7 अगस्त , 1905 . को कलकत्ता के टाउन हॉल में ' स्वदेशी आंदोलन ' की घोषणा के साथ ' बहिष्कार प्रस्ताव पारित किया गया
  •  16 अगस्त , 1905 ई . को बंगाल विभाजन का निर्णय प्रभावी हुआ । 
  • 16 अगस्त , 1905 को ही सम्पूर्ण बंगाल में कांग्रेस द्वारा ' शोक दिवस ' आयोजित किया गया था ।

  • स्वदेशी ' और ' बहिष्कार ' आंदोलन उग्रपंथी नेता बालगंगाधर तिलक , लाला लाजपत राय तथा अरविन्द घोष ने पूरे देश में फैलाया । ' बहिष्कार आंदोलन ' के अंतर्गत न केवल विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया आपतु स्कूलो , अदालता , उपाधियों एवं सरकारी नौकरियों आदि का मी बहिष्कार किया वाया था ।

मुस्लिम लीग

  • सलीमुल्लाह के नेतृत्व में 30 दिसंबर , 1906  कों  ढाका मे आयोजित एक बैठक में मुस्लिम लीग स्थापना की गई ।

  • 1908 ई. में अमृतसर में हुए मुस्लिम लीग अधिवेशन में मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन  मण्डल की मांग की गई थी । इसे माग की पूर्ति शीघ्र ही 1909 ई . में भारतीय परिषद् अधिनियम ( मार्ले मिंटो सुधार अधिनियम ) द्वारा हुई थी ।

कामागाटामारू प्रकरण

  • कामागाटामारू प्रकरण 1914  में घटित हुआ था ।
  • इस प्रकरण के अंतर्गत 1914 ई में भारतीयों के कनाडा प्रवेश को लेकर कुछ भारतीयों पर लगे प्रतिबन्धों के विरुद्ध आंदोलन हुआ ।
  • आंदोलन के नेताओं ने शोर कमेटी की स्थापना की । नेताओं में प्रमुख थे - बलवन्त सिंह , हुसैन रहीम और सोहन लाल पाठक आदि ।

कांग्रेस का सूरत अधिवेशन ( 1907 ई . )

  •  राष्ट्रीय आंदोलन की उग्रता के साथ - साथ कांग्रेस के उदारवादी नेताओं और उग्रवादी नेताओं के मध्य मतभेद व्यापक होते जा रहे  थे । जिसके परिणामस्वरूप 1907 ई . के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस उदारवादी एवं उग्रवादी गुटों में विभक्त हो गई ।

 लखनऊ पैक्ट ( 1916 ई . )

  • 1915 ई . में मुहम्मद अली जिन्ना के व्यक्तिगत प्रयास से बम्बई में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के अधिवेशन साथ - साथ हुए । 
  •  मुस्लिम लीग और कांग्रेस द्वारा नियुक्त समितियों ने मिलकर एक संयुक्त योजना बनाई , जो 1916 ई . के कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में स्वीकृत हो गई , यही योजना ' कांग्रेस - लीग योजना ' ( लखनऊ पैक्ट ) कहलाती है ।
  • लखनऊ पैक्ट द्वारा कांग्रेस ने पहली बार मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन मण्डल की मांग को औपचारिक रूप से स्वीकार कर ली  जो कालान्तर में कांग्रेस की भयंकर भूल सिद्ध हुई । 

होमरूल लीग आन्दोलन ( 1916 ई . )
  • 28 अप्रैल , 1916 ई . को बाल गंगाधर तिलक द्वारा ' महाराष्ट्र होमरूल लीग ' की स्थापना की गई , जिसका केन्द्र पूना में था ।
  • बाल गंगाधर तिलक के पत्र ' केसरी ' ने भी इस आंदोलन के प्रचार में अग्रणी कार्य किया ।
  • सितम्बर 1916 ई . में एनीवेसेन्ट द्वारा मद्रास में अखिल भारतीय होमरूल लीग ' की स्थापना की गई ।
  • एनीबेसेन्ट ने अपने दैनिक पत्र ' न्यू इंडिया ' तथा साप्ताहिक पत्र ' कॉमनवेल्थ ' द्वारा होमरूल आंदोलन का प्रचार किया ।  

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का तृतीय चरण ( 1919 - 1947 ई . )

  • भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का तृतीय चरण गाँधी युग ' के नाम से जाना जाता है ।
  • 1915 ई . में दक्षिण अफ्रीका से लौटकर मोहनदास करमचन्द गाँधी ने गोपालकृष्ण गोखले की अपना राजनीतिक गुरु ' बनाया ।
  • भारत वापसी के समय प्रथम विश्वयुद्ध चल रहा था | गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार के युद्ध प्रयासों में सहायता की , फलत : ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ' केसर - ए - हिन्द ' सम्मान से सम्मानित किया ।
  • गाँधीजी ने भारत वापस आने पर 1915 ई . में अहमदाबाद के समीप साबरमती नदी के तट पर ' साबरमती आश्रम स्थापित किया था ।
  • भारत में 1917 - 18  ई . के दौरान गाँधी जी ने चम्पारण किसान आंदोलन , खेड़ा किसान आंदोलन और अहमदाबाद मजदूर आंदोलन का सफल नेतृत्व किया था ।

रौलेट एक्ट ( 1919)
  • क्रांतिकारी राष्ट्रवादी भावनाओं को कुचलने के लिए सन् 1918 ई . में गठित सर सिडनी रौलेट समिति की सिफारिशों के आधार फरवरी 1919 ई . में केन्द्रीय विधान परिषद् द्वारा एक विधेयक पारित किया गया , जिस ' रौलेट एक्ट ' के नाम से जाना जाता हैं ।
  • इस एक्ट के द्वारा अंग्रेजी सरकार जिसको,  चाहे  जब तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रख सकती थी । 
  • यह कानून जनता को सामान्य स्वतंत्रता पर प्रत्यक्ष कुठाराघात था । इसीलिए भारतीय जनता ने इसको ' काला कानून ' कह कर कटु आलोचना की । गाँधीजी ने रौलेट एक्ट की आलोचना करते हुए सत्याग्रह करने का निश्चय किया एवं सत्याग्रह सभा स्थापित की ।
  • 6 अप्रैल , 1919 ई . को गाँधी जी के अनुरोध पर देश भर में हड़तालों का आयोजन हुआ । सरकार ने गाँधीजी के पंजाब एवं दिल्ली में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया ।  
  • 9 अप्रैल 1919 ई . को गांधीजी के दिल्ली में प्रवेश करते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया , इससे जनता में आक्रोश बढ़ गया । 
  • अंततः सरकार ने गांधीजी को बम्बई ले जाकर रिहा कर दिया , परन्तु आक्रोश कम नहीं हुआ और जलियांवाला बाग की घटना घटित हो गई ।

जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड ( 1919 ई . )  

  • रौलेट एक्ट के विरोध में जगह - जगह पर पंजाब में जनसभाएं आयोजित की जा  रही थी । इसी दौरान सरकार ने पंजाब के लोकप्रिय नेता डॉ . सैफ़हीन किचलू एवं डॉ . सत्यपाल को गिरफ्तार कर लिया ।
  • इसी गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल , 1919 ई . को अमृतसर में जलियांवाला बाग में एक जनसभा   आयोजित की गई थी  
  •  अमृतसर के फौजी कमांडर जनरल डार ने इस सभा को घेर कर निहत्थी भीड़ पर गोलियां चलवा दीं ।
  • इस हत्याकाण्ड के संदर्भ में सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 10 मिनट तक हुई गोलीबारी में लगभग 400 व्यक्ति मारे गए थे तथा 2000 लोग घायल हुए थे । इस हत्याकाण्ड ने राष्ट्र की सोई हुई आत्मा को झकझोर डाला और राष्ट्रीय आंदोलन की दिशा परिवर्तित कर दी ।
  • इस हत्याकाण्ड के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने नाइट ' की उपाधि वापस कर दी | वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकर नायर ने भी त्यागपत्र दे दिया ।
  • इस हत्याकाण्ड के विरुद्ध बढ़ते जन असन्तोष से भयभीत सरकार ने लॉर्ड हण्टर की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित की , जिसे हण्टर आयोग ' के नाम से जाना जाता है ।
  • हण्टर आयोग की रिपोर्ट के अनुसार जनरल डायर के कृत्य को वैध ठहराया गया ।

खिलाफत आंदोलन ( 1919 - 1921 ई .)

  • प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन और उनके सहयोगियों द्वारा तुर्की पर किए गए अत्याचारों ने मुसलमानों के एक वर्ग को गहरा आघात पहुँचाया । जिसके परिणामस्वरूप सितम्बर 1919 ई . में अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का गठन किया गया और अंग्रेजों के विरुद्ध खिलाफत आंदोलन प्रारंभ किया गया ।
  • गाँधीजी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को खिलाफत आंदोलन को समर्थन देने के लिए और साथ - साथ असहयोग आंदोलन चलाने  के लिए भी तैयार कर लिया ।
  • नवम्बर 1919 ई. में कांग्रेस और मुस्लिम लीग का साथ - साथ दिल्ली में अखिल भारतीय खिलाफत सम्मेलन हुआ , जिसमें गाँधीजी  को सर्वसम्मति से सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया । 

असहयोग आंदोलन ( 1 अगस्त 1920 ई )  

  • लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुए  कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित करवाया था । 
  •  गाँधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन 1 अगस्त , 1920 ई . को प्रारम्भ किया गया । शिक्षा संस्थाओं का असहयोग आंदोलन के समय सर्वाधिक बहिष्कार बंगाल में हुआ था ।
  • इस आंदोलन के दौरान गाँधी जी ने अपनी  केसर - ए - हिन्द ' की उपाधि भी वापस कर दी थी ।
  • 17 नवम्बर , 1921 ई . को प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन पर सम्पूर्ण भारत में सार्वजनिक हड़ताल का आयोजन किया गया | सरकार का दमन चक्र भी आंदोलनकारियों को रोक नहीं पाया|  अंतत : सरकार ने कांग्रेस और खिलाफत कमेटी पर प्रतिबन्ध लगाते हुए अली बन्धुओं , पं . मोतीलाल नेहरू , चितरंजन दास , लाला लाजपतराय , मौलाना आजाद आदि लोगों को गिरफ्तार कर लिया ।
  • फरवरी 1922 ई . में गाँधीजी ने वायसराय को एक पत्र लिखकर धमकी दी कि यदि एक हफ्ते के अन्दर सरकार की उत्पीडन नीतियों वापस नहीं ली गई तो व्यापक सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ कर दिया जायेगा ।
  • गाँधीजी की वायसराय को दी गई धमकी की अवधि पूरी होने से पूर्व ही उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित चौरी - चौरा नामक स्थान पर 5 फरवरी , 1922 ई . को आंदोलनकारी भीड़ ने पुलिस के 22 जवानों को थाने के अंदर जिन्दा जला दिया ।
  • इस घटना से गाँधी जी अत्यन्त आहत हो गए । और उन्होंने 12 फरवरी , 1922 ई . को असहयोग आंदोलन को समाप्त घोषित कर दिया ।
  • आंदोलन समाप्त होते ही सरकार ने 10 मार्च , 1922 ई . को गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया तथा असंतोष भड़काने के अपराध में छ : वर्ष की कैद की सजा दी गई ।
 

स्वराज पार्टी का गठन :  

  • असहयोग आंदोलन की समाप्ति के पश्चात 1 मार्च 1923 ई . में मोतीलाल नेहरू तथा सी . आर. दास ने इलाहाबाद में ' स्वराज पार्टी ' की स्थापना की ।
  • स्वराज पार्टी का उद्देश्य था कि कांग्रेस के अंदर रहकर चुनावों में हिस्सा लेना और विधान परिषद् में स्वदेशी सरकार के गठन की मांग उठाना तथा मांगों के न मानने पर विधानपरिषद् की कार्यवाही में बांधा पहुंचाना ।
  • सितम्बर 1923 ई . में दिल्ली में मौलाना आजाद के नेतृत्व में हुए कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में ' स्वराज पार्टी ' को मान्यता प्रदान की गई । 

क्रांतिकारी आन्दोलन :

  • 1922 ई . में गाँधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन समाप्त कर दिए जाने के पश्चात देश में राजनीतिक गतिविधियों के अभाव में उत्साही नवयुवक निराशा में पुन : क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर उन्मुख हुए । इस दौर में क्रांतिकारी आंदोलन दो धाराओं में विकसित हुआ . एक पंजाब , उत्तरप्रदेश और बिहार में तथा दूसरा बंगाल में । उत्तर भारत में क्रांतिकारी नेताओं में शचीन्द्रनाथ सान्याल , रामप्रसाद बिस्मिल तथा चन्द्रशेखर सर्वाधिक चर्चित थे । 

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन

  • अक्टूबर 1924 ई . में शचीन्द्रनाथ सान्याल , रामप्रसाद बिस्मिल और चन्द्रशेखर ने कानपुर में एक क्रांतिकारी संस्था ' हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन ' ( एच . आर . ए . ) की स्थापना की थी ।
  • इस संस्था ( एच . आर . ए . ) द्वारा 9 अगस्त , 1925 ई . को उत्तर रेलवे के लखनऊ - सहारनपुर सम्भाग के काकोरी नामक स्थान पर ट्रेन पर डकैती डाल कर सरकारी खजाना लूटा गया था , यह घटना काकोरी - काण्ड ' के नाम से चर्चित है ।
  • सरकार ने काकोरी - काण्ड ' के यड्यन्त्र में शामिल 29 क्रांतिकारियों को अभियुक्त बनाया , जिनमें रामप्रसाद बिस्मिल , अशफाक उल्ला खां , रोशनलाल और राजेन्द्र लाहिड़ी को फांसी दी गई थी ।
  • इस काण्ड से संस्था ( एच . आर . ए . ) का अस्तित्व समाप्त हो गया । 

 हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन

  • चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में सितंबर 1928 ई . को दिल्ली में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ( एच . एस . आर . ए . ) की स्थापना की गई थी ।
  • साइमन कमीशन के विरोध के समय लाला लाजपत राय पर लाठियों से प्रहार करवाने वाले सहायक पुलिस अधीक्षक साण्डर्स ( लाहौर ) की 30 अक्टूबर , 1928 ई . को भगत सिंह , चन्द्रशेखर आजाद और राजगुरु द्वारा की गई हत्या हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन की क्रांतिकारी गतिविधि थी ।  
  •  हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन के दो सदस्यों ( भगत सिंह और बटुकेश्वर ने 8 अप्रैल , 1920 ई . को केन्द्रीय विधानमण्डल में बहस के दौरान बम फेंका , जिसका उद्देश्य सरकार को आतंकित करना था ।
  • विधानमण्डल पर बम फेंकते समय ही पहली बार भगतसिंह ने ' इंकलाब जिन्दाबाद का नारा दिया था ।
  • ' इंकलाब जिन्दाबाद ' की रचना मुहम्मद इकबाल ने की थी ।
  • 23 मार्च , 1931 ई . को भगतसिंह , सुखदेव और राजगुरु को ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी दी गई ।
  • तत्पश्चात् हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन के एकमात्र बचे सदस्य चन्द्रशेखर आजाद 27 फरवरी , 1931 ई . को पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए । इस प्रकार उत्तर भारत में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएश की गतिविधियों का सदैव के लिए अंत हो गया । 

इण्डियन रिपब्लिक आर्मी

  • बंगाल में सूर्यसेन ने ' इण्डियन रिपब्लिक आर्मी ' ( आई . आर . ए . ) की स्थापना की थी । यह संस्था चटगांव में सक्रिय थी । इस संस्था के अन्य प्रमुख सदस्य थे - अनंत सिंह , अम्बिका चक्रवर्ती , प्रीतिलता वाडेदर , गणेश घोष और कल्पना घोष ।
  • 16 फरवरी , 1933 . को राजद्रोह के आरोप में सूर्यसेन बन्दी बना लिए गये तथा 12 फरवरी , 1934 ई को उन्हें फांसी दे दी गई ।
  • ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों का भयंकर दमन किया , जिसके फलस्वरूप 1932 ई . तक क्रांतिकारी आंदोलन बिखर गया ।
 

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