महात्मा गाँधी की
जीवनी
- " आने वाली पीढियाँ शायद मुश्किल से ही यह विश्वास कर सकेंगी कि गांधीजी जैसा हाड़ - माँस का पुतला कभी इस धरती पर हुआ होगा ?
- " अलबर्ट आइन्स्टीन का उपर्युक्त कथन आज के इस आतंकवादी , बर्बर और जघन्य अमानवीय कृत्यों को देखकर सचमुच बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देता है | गांधी मात्र हाड़ - माँस के व्यक्ति ही नहीं थे , बल्कि वे सम्पूर्ण एक विचारात्मक आंदोलन थे , सामयिक दर्शन थे और दूरदर्शी युग पुरुष थे | महात्मा बुद्ध के बाद शांति के वे ऐसे मसीहा थे , जिन्होंने सत्य - अहिंसा के व्यापक महत्व को समझा और अपने में आत्मसात कर क्रियान्वित भी किया | जैसा वे कहते थें ,करके भी दिखाते थे | वे समग्र मानवता के कल्याण और सर्वोदय के लिए जीवनभर प्राणपण से जुटे रहे .
- वाई जी . कृष्णमूर्ति ने उनका मूल्यांकन करते हुए कहा था कि महात्मा गांधी केवल संत ही नहीं थे ,बल्कि वे एक महान क्रांतिकारी भी थे | यदि उन्हें उग्र क्रांतिकारी कहा जाए , तो अत्युक्ति नहीं होगी |
- काठियावाड की रियासत पोरबंदर के दीवान करमचंद गांधी को 2 अक्टूबर , 1869 के दिन पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई | पारिवारिक प्यार से मोनिया के नाम से पुकारे जाने वाले मोहनदास आने वाले कल के विश्वविख्यात सत्य - अहिंसा - शांति के अग्रदूत होंगे , उस समय यह कौन जानता था ? बचपन में ही भगवद गीता व धार्मिक वातावरण के साथ ' श्रवण कुमार की पितृभक्ति ' और ' सत्यवादी हरिश्चन्द्र ' नामक पुस्तकों का उनके शिशु मन पर गहरा प्रभाव पड़ा था | हालांकि बाल्यावस्था की नासमझी में चोरी , झूठ , धूम्रपान , धोखा , अविश्वास जैसे निंदनीय कार्य करने वाले बालक गांधी गांधी अपने एक बदनाम मित्र के बहकावे में कोठे की सीढ़ियाँ तक चढ़ गए थे |
- इन घटनाओं को देखकर स्पष्ट होता है कि एक सामान्य व्यक्ति को असामान्य बनने में कैसे कठिन संघर्ष से गुजरना पड़ा होगा | गाधी की आंतरिक इच्छा डॉक्टर बनने की थी , किन्तु पैतृक पेशा दीवानगीरी के लिए उन्हें बैरिस्टर बनने के लिए प्रेरित किया गया | इंगलैण्ड प्रवास में वे शिक्षा ग्रहण करते हुए मॉस मदिरा तथा सुंदरियों के मोहपाश से विलग रहे | बैरिस्टर बनने के बाद गांधी में काफी परिवर्तन हुआ था ।
- इंगलैण्ड से वापस लौटते समय तक गांधी जी भाषण देना नहीं जानते थे , पर विदाई बेला में उन्हें कुछ बोलना था | गांधी के जेहन में एडीसन की घटना आई - एडीसन को ‘ हाउस ऑफ कॉमन्स ' में बोलना था | वे खड़े होकर ' आई कंसीव , आई कसीव , आई कंसीव ' तीन बार बोले और बैठ गए । अंग्रेजी में कंसीव का अर्थ ' मेरी धारणा है ' के अतिरिक्त ' गर्भ धारण करना भी होता है | बस फिर तो एक सिरफरे ने एडीसन की इस दशा पर छींटा – कसी शुरू कर दी और कहा ' इन सज्जन ने तीन बार गर्भ तो धारण किया , मगर जना कुछ भी नहीं | हाउस में जोरदार ठहाके लगे | गांधी ने इसी घटना का उल्लेख कर भाषण शुरू करके अपनी कमजोरी छिपाने का मन तो बना लिया पर खड़े होकर बोलने का साहस न जुटा सके और ' धन्यवाद ' कहकर बैठ गए | लेकिन आगे चलकर वही गांधी मानव उत्थान के लिए शांति का संदेश देने में कितने निपुण सिद्ध हुए ?
- महात्मा गांधी के दक्षिणी अफ्रीका प्रवास पर यदि हम एक विहगम दृष्टि डाले तो स्पष्ट होगा कि एक साधारण से व्यक्ति के रूप में पहुँचे गांधी ने 22 वर्ष की लम्बी लड़ाई में अपमान - भूख मानसिक संताप व शारीरिक यातनाएँ झेलते हुए न केवल राजनीतिक , बल्कि नैतिक क्षेत्र में जो उपलब्धियाँ प्राप्त की , उसकी मिसाल अन्यत्र मिलना असम्भव है | इसी 22 वर्ष के गहन अनुभवों से भारत की बागडोर अपने हाथ में लेना गांधी की विवशता थी | रूसी ऋषि टालस्टाय की अनुमति और आशीर्वाद से दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग से 22 मील दूर 1100 एकड़ धरती पर ' टालस्टाय फार्म ' की स्थापना हुई , जिसके सूत्रधार थे - जर्मनी के वास्तुशिल्पी कालेनवाक साहब | वे टालस्टाय के भक्त और गांधी के अभिन्न मित्र थे | वहीं सहशिक्षा के दौरान एक छात्र - छात्रा के संसर्ग के मामले से तूफान उठ खड़ा हुआ तो गांधी ने प्रायश्चित बतौर स्वयं सात दिन का उपवास रखकर एक नई दिशा प्रदान की | गांधी के कुल अठारह उपवासों में यह प्रथम उपवास था और इसका अच्छा परिणाम निकला | गांधी की आजीवन यही मान्यता रही कि अपनी तपस्या के बल से ही दूसरों का हृदय परिवर्तन किया जा सकता है | गांधी के इस अफ्रीकी सत्याग्रह में कालेनवाक , श्रीमती पोलक एवं कु . एलेसिन तीन विदेशी मित्रों का भरपूर सहयोग रहा । गांधी की स्पष्ट नीति थी कि वे कभी दूसरे को पराजित करके स्वयं विजयी नहीं बनते थे | बल्कि प्रभावित करके अपना बना लेते थे ।
- उनके भारत लौटने पर गुरुदेव टैगोर ने कहा - ' भिखारी के लिबास में एक महान आत्मा लौटकर आई है | सोने की खानों के देश से गांधी अनुभव की ऐसी पूंजी लेकर ही महान हुए थे | सन् 1919 से लेकर 1948 में अपनी मृत्यु तक भारत के स्वाधीनता आंदोलन के महान ऐतिहासिक नाटक में गांधी की भूमिका मुख्य अभिनेता की रही | उनका जीवन उनके शब्दों से भी बड़ा था , चूंकि उनका आचरण विचारों से महान था और उनकी जीवन प्रक्रिया तर्क से अधिक सृजनात्मक थी |
- कर्मयोगी - गांधी जी जब कलकत्ता में थे तो उनकी मुलाकात गुरूदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर से कराई गई | आश्चर्य तो यह रहा कि इन दोनों के मिलन के सूत्रधार थे - अंग्रेज चार्ल्स फ्रीअर एंड्रयूज | इनमें एक था फकीर - संयासी तो दूसरा चिंतक - कवि , पर दोनों में आंतरिक साम्य था | गुरूदेव ने ही गांधी में महात्मा के दर्शन किए और उन्हें सर्वप्रथम महात्मा कहकर सम्बोधित किया |
- गांधी जी स्वामी विवेकानन्द से भी मिलने को आतुर थे , पर दुर्भाग्य से स्वामी जी अस्वस्थ थे . अतः भेंट सम्भव न हो सकी | उल्लेखनीय है पूना की साबरमती जेल में गांधी के आमरण उपवास को गुरूदेव रबीन्द्रनाथ ने फलों का रस पिलाकर तोड़ते हुए गीतांजलि का प्रिय प्रार्थना - गीत सुनाया था । “ जीवन जखन सुकाए जाए , करुणा धाराए एशो ' '
- जनवरी 1928 में गांधी जी ने ‘ अन्तर्राष्ट्रीय बन्धुत्व संघ के सम्मुख भाषण देते हुए कहा था - ‘ लम्बे अध्ययन और अनुभव के उपरांत मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि सभी धर्म सच्चे हैं । सब धर्मों में कोई न कोई खराबी है । और सभी धर्म मुझे उतने ही प्रिय हैं , जितना मेरा हिन्दू धर्म | सर्वप्रथम सन् 1919 में भारत लौटने पर गांधी ने भारतीय राजनीतिज्ञ , सामाजिक और आर्थिक दशाओं का अध्ययन करने के साथ चम्पारण और खेड़ा के कृषकों और अहमदाबाद के मिल मजदूरों के अधिकारों की प्राप्ति के लिए सत्याग्रह का प्रयोग किया |
- सन् 1920 से 1947 तक का समय राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का गांधी युग कहा जाता है . प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर भारत का घटनाक्रम इतनी तेजी से घूमा कि राष्ट्रीय संग्राम का नेतृत्व गांधी जी के हाथों में आकर वास्तविक रूप से जन - आंदोलन हो गया ।
- अंग्रेजों के विश्वासघात ने गांधी को 1921 में असहयोग आंदोलन छेड़ने को विवश कर दिया | इस आंदोलन से देश की समस्त जनता में अपूर्व जागृति उत्पन्न हुई | चौरी - चौरा स्थान पर पर हिंसात्मक घटनाओं को देखकर गांधी ने आंदोलन स्थगित कर दिया |
- सन् 1930 में गांधी ने पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन का व्यापक प्रदर्शन कर दिखाया | अंग्रेजी हुकूमत ने सख्ती से दमन चक्र किया | स्वतंत्रता की अग्नि और भड़क उठी , 26 जनवरी , 1930 को हिन्दुस्तान के करोड़ों लोगों ने पूर्ण स्वराज की शपथ ली थी | अतः 26 जनवरी को ही स्वाधीन भारत का संविधान लागू कर इस दिन को गणतंत्र दिवस की गरिमा प्रदान की गई है ।
- लंदन की गोलमेज परिषद् में वाइसराय के भवन की सीढियाँ चढ़ रहे गांधी को देख विन्स्टन चर्चिल ने घृणाभाव से कहा था - " एक समय का ' इनरटेम्पल ' का वकील अब राजद्रोही फकीर बनकर अर्धनग्न अवस्था में सम्राट के प्रतिनिधि के साथ समान स्तर पर संधि की मंत्रणा करने के लिए वाइसराय के महल की सीढ़ियाँ चढ़ रहा है | यह दृश्य घृणापूर्ण एवं अपमानजनक है | लंदन गोलमेज परिषद् में भाग लेकर लौटते समय गांधी पाँच दिनों के लिए फ्रांसीसी लेखक रोमांरोलां के साथ रहे | दोनों मनीषियों का यही प्रथम और अंतिम मिलन था | रोमांरोलां न तो कभी हिन्दुस्तान आए थे और न गांधी से मिले थे , फिर भी मुलाकात से कुछ समय पूर्व उन्होंने गांधी जी की जीवनी लिखी थी | उन्होंने गांधी को टालस्टाय तथा टालस्टाय से अधिक सच्चा ईसाई बताया था |
- गांधी जो पहले ' ईश्वर सत्य है ' कहते थे , अब ‘ सत्य ईश्वर है ' कहने लगे थे . । शताब्दियों से पीड़ित और उपेक्षित दलित - शोषित वर्ग की मार्मिक पीड़ा को गांधी ने समझा और उन्हें हरिजन नाम देकर उनके कल्याण के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर दिया | अस्पृश्यता के रोग से अछूते गांधी के मन में न कोई छोटा था न कोई बड़ा , उनके आश्रम में ‘ वैष्णव जन तो तेने कहिए , जे पीर पराई जाणे रे ‘ तथा ' अल्हा ईश्वर तेरे नाम , सबको सन्मति दे भगवान जैसे भजन नित्यप्रति गुंजित होते थे | उनका सेवाग्राम तो श्रम की महत्ता का राष्ट्रीय तीर्थ सिद्ध हुआ है | उन्होंने किसानों को प्रोत्साहित करते हुए कहा था कि मैं चाहता हूँ कि हमारे देश का राष्ट्रपति एक किसान हो | उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ' हिन्द स्वराज्य ' में थोरो एवं टालस्टाय के विचार प्रतिबिम्बित हुए हैं | ' इण्डियन ओपीनियन ' , ' यंग इण्डिया ' और ' हरिजन ' नामक पत्रिकाएँ उनके विचारों की संवाहक सुगंधि थीं |
- 1946 को पं . जवाहरलाल नेहरू को जब अन्तरिम सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया तो जिन्ना ने नाराज होकर ' सीधी कार्यवाही की घोषणा कर दी | फलस्वरूप बंगाल में बहुसंख्यक मुसलमानों ने हिन्दुओं पर जो जुल्म और कहर ढाए , ऐसे अमानवीय बर्बर कृत्य पहले कभी देखने में नहीं आए थे | प्रतिक्रियास्वरूप पूरे देश में हिन्दू मुस्लिमों में कत्लेआम , बलात्कार , राजनी , लूटपाट का भयानक दौर चल पड़ा | इन अनवरत मार-काट की घटनाओं से गांधी को गहरा सदमा पहुँचा | वे चिड़चिड़े हो उठे .| देखते नहीं हो , मैं अपनी चिता पर बैठा हूँ तथा तुम्हें मालूम होना चाहिए कि तुम एक मुर्दे से बात कर रहे हो जैसे कथन उनकी मार्मिक पीड़ा को व्यक्त करते हैं | नोआखली की घटना से तो उनका हृदय छलनी हो गया |
- 29 जनवरी को गांधी ने अपनी भतीजी - पौत्री मनु से कहा था - " यदि किसी ने मुझ पर गोली चला दी और मैंने उसे अपनी छाती पर झेलते हुए होठों से राम का नाम ले लिया तो मुझे सच्चा महात्मा कहना | और यह कैसा संयोग था कि 30 जनवरी को उस महात्मा को मनोवांछित मृत्यु प्राप्त हो गई | संवेदित स्वरों में लार्ड माउंटबेटन ने ठीक ही कहा था - " सारा संसार उनके जीवित रहने सम्पन्न था और उनके निधन से वह दरिद्र हो गया है . "
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