पर्यावरण बचाओ जीवन पाओ
बढ़ती आबादी और इसके साथ तकनीकी और विकास को आधार बनाकर जीवन का उच्च स्तर पाने की चाह ने विश्व स्तर पर पर्यावरण को प्रभावित किया है | पिछले कुछ दशकों से वनों की कटाई , औद्यगीकरण तथा बढ़ती जनसँख्या ने सम्पूर्ण वातावरण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है | जनसँख्या वृद्धि इसका प्रमुख कारण है
जनसँख्या वृद्धि ने ही अन्य कारणों को जन्म दिया है | अतः जनसँख्या वृद्धि को हम सबसे बड़ा प्रदूषक कह सकते है |
जीवन की उत्त्पत्ति तो करोंड़ों वर्ष पूर्व संयोगवश संभव हुई , तब से आज तक अनेक जीवों का विकास भी हो गया है , लेकिन बढते प्रदूषण और अन्य मानवीय गितिविधियों ने इनके आस्तित्व पर खतरा पैदा कर दिया है | कुछ जीव तो विलुप्त भी हो गए हैं और कुछ विलुप्त होने की कगार पर आ खड़े है |
विनाश के कगार पर पर्यावरण
प्रकृति मे हवा , पानी , मिट्टी , पौधे तथा अन्य प्राणी सभी सम्मिलित रूप से पर्यावरण की रचना करते है | लेकिन आज मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए जंगलों को काटता चला जा रहा है | प्रदुषण फैलाते जा रहे है | जाहिर है कि इंसान के इन हरकतों को धरती भी अब बर्दाश्त नहीं करेगी | अगर अभी भी ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब ' ग्रीन हाउस प्रभाव ' के कारण बढ़ती हुई गर्मी ध्रुवों के बर्फ को पिघलाकर प्रलय मचा देगी और इसका जिम्मेदार होगा स्वयं मानव | वैज्ञानिकों ने इस गर्मी को ग्लोबल वार्मिंग का नाम दिया है | वायु मे 78 % नाइट्रोजन , 21 % ऑक्सीजन , 0.05 % कार्बन डाई आक्साइड उपस्थित है | पृथ्वी के सभी जीव आक्सीजन पर निर्भर है , इसलिए आक्सीजन को प्राणवायु भी कहा जाता है | सभी जीव आक्सीजन लेते है और कार्बन डाई आक्साइड छोड़ते हैं , ठीक इसके विपरीत पेड़ -पौधे कार्बन डाई आक्साइड ग्रहण करते है और आक्सीजन गैस छोड़ते है |
इस प्रकार दोनों गैसों मे संतुलन बना रहता है |
प्राणवायु ( आक्सीजन ) के लिए जरूरी है वृक्षारोपण
मनुष्य प्रतिदिन औसतन 22,000 बार सांस लेता है | इस प्रकार वह 15 किलो वायु ग्रहण करता है | लेकिन सुख सुविधाओं के लिए मनुष्य वायु की प्राकृतिक स्वछता को निरंतर नष्ट कर रहा है | पर्यावरण की समस्या किसी एक राष्ट्र की समस्या नहीं है बल्कि यह तो सम्पूर्ण विश्व की है जिसका समाधान संयुक्त प्रयासों से ही संभव है , वैसे तो वायु प्रदूषण के नियंत्रण हेतु कानून बनाया गया है पर इसका सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है |
पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग विनाश का कारण होगा
पृथ्वी पर बढ़ता तापमान केवल मानवजाति के लिए ही नहीं बल्कि सभी जीव जंतुओं और वनस्पतियों के लिए बहुत बड़ा खतरा है | विभिन्न प्रकार की फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआँ , वाहनों से निकलने वाला विषैला धुँआ वायु मे कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा को बढ़ाते जा रहें हैं | विभिन्न फैक्टरियों से निकलने वाला गन्दा और जहरीला तरल पदार्थ नदीयों को प्रदूषित कर रहा है | मनुष्य के मल -मूत्र नदियों को अपवित्र करते जा रहें है | और इस तरह बहुत सी नदिया विलुप्त हो गयी है और कुछ विलुप्त होने के कगार पर है |
पृथ्वी के वातावरण मे दूषित गैसों की वजह से पृथ्वी का तापमान बढ़ता चला जा रहा है | इसी तापमान वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग का नाम दिया गया है |
तापमान वृद्धि मे ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव
ग्रीन हाउस गैसें पृथ्वी से उत्सर्जित ऊष्मा को सोखने के साथ साथ पृथ्वी से निकले विकिरण को वायुमंडल से बाहर जाने से रोकती हैं | परिणाम स्वरुप पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ता जा रहा है | यह बहुत ही भयावह स्थिति बनती जा रही है और यही स्थिति विनाश का कारण बन सकती है |
प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी का तापमान बढ़ाने के लिए उत्तरदायी हैं |
कार्बन डाई आक्साइड - ग्रीन हाउस प्रभाव मे कार्बन डाई आक्साइड गैस का अंश लगभग 55 % है और औद्योगिक राष्ट्र लगभग 74 % कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन करते हैं जो 33 % जंगलों के कटान के कारण है | कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा प्रतिवर्ष 1.5 ppm की दर सी बढ़ रही है |
क्लोरोफ्लोरोकार्बन - यह गैस वायुमंडल में ओजोन क्षरण के लिए उतरदायी है | रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर से क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस निकलती है | इस गैस की समतापमण्डल मे ऊष्मा सोखने की क्षमता कार्बन डाई आक्साइड की अपेक्षा 5000 गुना अधिक है |
मीथेन - इस गैस का वायुमंडल मे 18 % ग्रीन हाउस प्रभाव बढ़ाने मे योगदान है | मीथेन गैस का उत्पादन मुख्यतः जैविक उत्पादों के गलने व सड़ने के कारण होता है | मीथेन कार्बन डाई आक्साइड की तुलना मे 25 गुना अधिक हानिकारक है |
नाइट्रस आक्साइड - ग्रीन हाउस प्रभाव मे इसका योगदान 6 % है | इसका उत्पादन मुख्यतः नाइट्रोजन उर्वरकों और जैविक उत्पादों के जलने और सड़ने की वजह से होता है | कार्बन डाई आक्साइड की अपेक्षा यह 230 गुना अधिक प्रभावी है |
तापमान वृद्धि रोकने के उपाय
- जनसँख्या वृद्धि पर रोक तथा कानून बनाकर सख्ती से पालन
- ईधन की खपत मे कमी
- वनों की कटाई पर प्रतिबन्ध
- उद्योगों पर नियंत्रण
- वृक्षारोपण अनिवार्य
- अनावश्यक वाहनों के आवागमन पर नियंत्रण
- प्रदूषण नियंत्रक तकनीकों का प्रयोग
- कृषि को बढ़ावा
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